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________________ विचारों की दृढ़ता १८३ संयम नहीं पलेगा। बिना पूछे नहीं जाना चाहिए, इसलिए मैं तो आपसे पूछने के लिए आया हूं। जब गुरु ने देखा कि अब यह साधुपने में रहनेवाला नहीं है, तब उससे कहा अच्छा, तो मेरी एक बात तो मानेगा ? वह बोला-और सब मानूंगा. पर नहीं जाने और विवाह नहीं करने की बात को नहीं मानूगा। यह सुनकर गुरु ने कहा- देख, मांस और मदिरा काम मे मत लेना। इनका सेवन मानव को दानव बना देता है । आपाढ़भूति ने कहा --महाराज, जब इतने दिनों तक आपकी सेवा में रहा हूं, तब यह बात अवश्य मानूंगा और मांसमदिरा का सेवन नहीं करूंगा । यदि कदाचिन् मेरे घर में आ भी जायगा, तो .मैं घर-वार को ठोकर मार कर वापिम आपके पास आ जाऊंगा । यह कह कर वह सीधे भरत नट के घर गया। वहां सभी लोग उसके आने की प्रतीक्षा कर हो रहे थे, सो इसे आया हुआ देखकर सब बहुत हर्पित हुए। और स्वागत करते हुए बोले-पधारिये ! आपाढ़भूति वोला...-यदि आप लोग आजन्म मांसमदिरा का सेवन त्याग करना स्वीकार करो तो मैं आ सकता हूं, अन्यथा नहीं। यह सुनकर वे सब बोले-इन दोनो का त्याग हम लोगों से नहीं हो सकता है 1 तव आपाढ़भूति बोला तो हम भी नहीं आ सकते है। यह सुनकर भरत नट ने सोचा--घर में बाया हुआ हीरा वापिस चला जाय, यह ठीक नहीं । अतः उसने लड़कियों से कहा- सोचलो, यदि ये दोनों चीजे छोड़ने को तैयार हो तो ये आ सकते है अन्यथा नहीं। तव दोनों लड़कियों ने कहा-हां, हम इन दोनों का त्याग करते हैं । आपादभूति ने कहा-देखो, आज तुम लोगों का स्वार्थ है, अतः त्याग की वात स्वीकार कर रही हो। किन्तु यदि किसी दिन तुम लोगो ने भूल से भी इसका सेवन कर लिया तो मैं एक भी क्षण तुम्हारे घर में नहीं रहूंगा और जहाँ से आया हूं वहीं पर वापिस चला जाऊंगा। फिर मैं किसी भी बन्धन से वधा नहीं रहूंगा। दोनों लडकियों ने आपाढभूति की बात स्वीकार करली और भरत नट ने ठाठ-बाट के साथ दोनों लड़कियों का विवाह उसके साथ कर दिया और आपाढ़भूति उनके साथ सर्व प्रकार के काम-भोगो को भोगता हुया आनन्द के साथ दिन बिताने लगा। भरत नट के पास अपार सम्पत्ति थी, विशाल महल था और सर्व प्रकार का यश-वैभव प्राप्त था, आपाढभूति इसमें ऐसा मस्त हो गया कि सामायिक, पौपध और नवकार मंत्र स्मरण आदि सब भूल गया । यदि उसे ध्यान है तो केवल एक ही बात का कि मेरे घर में कोई मांस-मदिरा का सेवन न करे । नट की दोनों लड़कियाँ इधर-उधर सखी-सहेलियों के घर जाती है तो वहां पर भी ये सावधान रहती हैं कि कही पर मांस-मदिरा खाने-पीने में न आ जाय । आपाटभूति भी खाने-पीने के विषय में पूर्ण सतर्क रहता है और सब की और
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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