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________________ विचारों की दृढ़ता आकाश गूंज उठा। आषाढ़भूति के इस अनुपम नृत्य को देखकर विदेशी नृत्यकार उनके चरणों में आकर गिर पड़ा और बोला हे कलाकार, ऐसी अनुपम कला आज प्रथम वार ही मेरे देखने में आई है। मेरे पास ऐसी कोई कला नहीं है, कि जिससे मैं तुम्हारी वरावरी कर सकू ? फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि आप कौन-कौन से नाटक कर सकते हैं ? आपाढभूति ने कहामैं संसार भर के नाटक कर सकता हूं। यह सुनकर वह सोचने लगा कि मैं इसे ऐसे नाटक को करने के लिए कहूं कि जिसे यह नहीं कर सके । तब उसने राजा ओणिक से कहा महाराज, मैं इनके द्वारा किया हुआ भरत चक्रवर्ती का नाटक देखना चाहता हूं। यदि यह नाटक आप इनके द्वारा दिखवा देवें तो वड़ी कृपा होगी। श्रेणिक ने भरत नट से कहा- कल आपके जमाईराज को भरतराज का नाटक करना होगा। सारे नगर में घोषणा करा दी गई । नत्य स्थल पर विशाल मंडप बनाने का आदेश दे दिया गया। एक झटका: घोपणा सुनकर भतरनट की लड़कियों ने सोचा-इस नाटक के करने में तो तीन-चार दिन लगेंगे और हमारे पतिदेव नाटक करने में संलग्न रहेंगे। अतः मांस-मदिरा के सेवन के यह लिए अवसर उपयुक्त है । ऐसा विचार करके उन दोनों ने नौकरों से दोनों चीजें मंगाकर उनको खा-पी लिया। जव आपाढ़भूति राजसभा से वापिस आया और घर में गया तो उसे मांस-मदिरा की गन्ध आई। उसे असली वात समझते देर नहीं लगी और उसने अपनी दोनों ही स्त्रियों को डाटते और धिक्कारते हुए कहा-अरी दुष्टाओ, तुम्हें मांसमदिरा को सेवन करते हुए शर्म नहीं आई और मेरे से किये हुए अपने वायदे को तोड़ दिया। अब मैं भी अपने वायदे के अनुसार इस घर में एक क्षण भी नहीं रह सकता हूं। आषढ़भूति की बात सुनते ही उनका नशा काफूर हो गया और क्षमा-याचना करती हुई बोली-पतिदेव, हमसे भूल हो गई। अब आगे से हम उन्हें कभी काम में नही लेंगी। आपाढ़भूति ने कहा-अब तुम लोग हमारे काम की नहीं रही हो। और मैं भी अब इस घर में नही रह सकता हूं, यह कहकर आपाढ़भूति महल से निकल कर बाहिर चले आये । जव भरतनट को यह सब वृतान्त ज्ञात हुआ तो उसने लड़कियों से कहाअरी पापनियो, तुमने यह क्या किया? ऐसे अनमोल हीरे को तुम लोगों ने हाथ से खो दिया । इसने तो राजसभा मे आज मेरी और राजा की इज्जत बचा ली और विदेशी नृत्यकार को हरा दिया। तुम लोगों ने त्यागी हुई वस्तु को काम में ले लिया, यह बहुत भारी पाप किया है। लड़कियां लज्जित और
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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