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________________ १७८ प्रवचन-सुधा इन में रचे देव तरु पाये, पाये श्वभ्र मुरारी । जे विरचे ते सुरपति अरचे, परचे सुख अविकारी । मत कोज्यो जी यारी, ये भोग० ॥ ३ ॥ पराधीन छिन मांहि क्षीण ह, पाप-बन्ध करतारी । इन्हे गिन्हें सुख आक मांहि जिम, आम तनी बुधि धारी ।। मत कोज्यो जो यारी, ये भोग० ॥ ४ ॥ मीन मतंग पतंग भंग मृग, इन वश भये दुखारी। सेवात ज्यों किपाक ललित, परिपाक समय दुखकारी । मत कीज्यो जी यारी, ये भोग० ॥ ५ ॥ सुरपति नरपति खगपति हू की, मोग न आस निवारी । भव्य, त्याग अव, भज विराग-सुख, ज्यों पाच शिव नारी ॥ मत कोज्यो जी यारी, ये भोग मुजंग सम जानके ॥ मत कोज्यो जी यारी ॥ ६ ॥ और इसका अर्थ समझाते हुये कहा- हे भव्य, तू इन पांचो इन्द्रियों के काम-भोगों से यारी (प्रीति) मत कर, इन्हें काले सांप के समान समझ । भुजग का डसा पुरुप तो एक वार ही मरता है किन्तु विपय भोग रूपी भुजंग से डसा जीव अनन्तभवो तक मरण के दुख पाता है। फिर इन इन्द्रियों के काम-भोगों के सेवन से तृष्णा उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है, जैसे कि खारा पानी पीने से प्यास शान्त नही होती, किन्तु और अधिक बढ़ती है। फिर ये भोग रोगों के घर हैं, इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग के द्वारा सदा शोक को उत्पन्न करते रहते हैं। समता रूपी लता को काटने के लिए कुछार के समान हैं, शेर, सिंह और शत्रु आदि भी वैसा दु:ख नही देते हैं जैसा कि महादुःख ये काम भोग देते हैं । जो इन काम-भोगो में रचता है--आसक्त होता है, वह देव भी मर कर वृक्षादि एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है। नारायण आदि महापुरुप भी इन काम-भोगो में रच करके नरक को प्राप्त हुए है और जो इनसे विरक्त हुए हैं उनकी इन्द्रो ने पूजा की है और निर्विकार मिराबाध मोक्ष-सुख को पाया है। वे काम-भोग पराधीन हैं, क्षणभंगुर है और पाप-बन्ध के करनेवाले हैं। जो इन मे सुख मानता है, वह उस मनुष्य के समान मूर्ख है जो कि आकड़े को आम मानकर उससे मिष्ट फल पाना चाहता है। हे भव्य, और भी देख-इन पांचों इन्द्रियों में से एक-एक इन्द्रिय के वश हो कर मरण-जनित दु:ख पाया है। हाथी स्पर्शन इन्द्रिय के वश होकर मारा जाता है, मछली रसना इन्द्रिय के वश होकर वंशी में लगे आटे को खाने की
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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