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________________ सर्वज्ञवचनों पर आस्था ११६ यहां पर कोई पूछे कि भगवान् तो कभी के मोक्ष में चले गये हैं और उनकी वाणी तो बहुत समय के पश्चात् शास्त्र-निवद्ध हुई है। तब इन्हें भगवान के वचन कैसे माना जा सकता है ? भाई, मैं आप लोगों से पूछता हूं कि किसी व्यक्ति का जन्म वाप की मृत्यु के छह मास बाद हो तो वह पुत्र किसका कहलायगा? वह उस वाप का ही तो कहलायगा न ? क्या वह उसके घर का मालिक नहीं बनेगा? वह अपने बाप का है, तभी तो उसका अधिकारी है। आप लोग फिर कह सकते हैं कि शास्त्र तो भगवान् के मोक्ष में जाने के कई शताब्दी बाद ही लिखे गये हैं, फिर उनको कैसे प्रमाण माना जाय ? भाई, यह वात ठीक है कि शास्त्र कई शताब्दी वाद लिखे गये हैं मगर जब और जिसने लिखे, तब तक भगवान् के वीतरागी ज्ञानी शिष्यों की परम्परा तो अविच्छिन्न रूप से चलती। भगवान महावीर के मोक्ष में जाने के पश्चात् अनेक धुरन्धर महापुरुष हुए हैं। भगवान महावीर के बाद गौतमस्वामी कैवली हुए, उनके मोक्ष में जाते ही सुधर्मास्वामी केवली हुए और उनके मोक्ष में जाते ही जम्बूस्वामी केवली हुए। इस प्रकार कितने ही वर्षों तक केवल ज्ञान के द्वारा भगवान महावीर के समान ही यथावत् उपदेश होता रहा । तत्पश्चात द्वादशांग वाणी के वेत्ता पांच श्रुतकेवली हुए, जिनमें अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी थे। पश्चात् ग्यारह अंग और दश पूर्वो के वेत्ता स्थूलभद्रादि अनेक आचार्य हुए हैं, जिनके क्रमवार नामों का उल्लेख नन्दीसूत्र के प्रारम्भ में किया गया है। इस प्रकार निर्दोष आचार्यों की परम्परा से आया हुआ थु त ही पुस्तकारूढ़ किया गया है। अतः उसमें किसी भी प्रकार के मिलावट होने की शका करना निर्मूल है भले शास्त्र पीछे लिखे गये हैं, परन्तु उनमें वे ही उपदेश संग्रहीत किये गये है, जो भगवान महावीर ने दिये थे और जो गुरुशिष्य रूप आचार्यों की परम्परा से लिखने के समय तक अनवच्छिन्न रूप से आ रहे थे। उस समय के आचार्यों ने जब यह अनुभव किया कि काल के दोप से लोगों की स्मरणशक्ति उत्तरोत्तर कम होती जा रही है, भगवान की वाणी का लोप न हो जाय, इस श्रु त-वात्सल्य से प्रेरित होकर समस्त संघ ने एकत्र हो उनका संकलन कर उन्हें लिपि-बद्ध कर दिया, जो आज तक उसी रूप में चले आ रहे है। कोई तलवार राजा के शस्त्रागार में पांच सौ वर्ष से पड़ी हुई चली आ रही है। अब कोई कहे कि उसका बनानेवाला तो पांच सौ वर्ष पहिले मर गया है । तो क्या वह तलवार उसकी बनाई हुई नहीं कहलायगी? फिर भाई, उसके नयी पुरानी होने के गीत गाते हो, या तलवार की धार देखते हो कि वह वार करती है, या नहीं ? भगवान् के वचन तो वही के वही हैं। भले ही
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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