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________________ ११८ प्रवचन-सुधा के रोग का ठीक-ठीक निदान करनेवाला चिकित्सक भी चतुर एवं कुशल होगा । औषधि उत्तम है, लेते ही रोग मिटाने की सामर्थ्य रखती है। परन्तु वह यदि रोग को भले प्रकार समथे विना और रोग का ठीक निदान किये विना रोगी को दी जाय तो क्या लाभ करेगी ? नही करेगी। अरे, रोगी को आवश्यकता है पथ्य भोजन की और पिलाया जाय पानी ? तो क्या वह शक्ति प्राप्त करेगा ? और यदि रोगी अजीर्ण रोग से ग्रस्त है तो उसे आवश्यकता है भोजन बन्द करके पानी पिलाने की । किन्तु उसे भोजन वगया जाय, तो अपने जीवन से ही हाथ धोवेगा। इस सर्व कथन का सार यह है कि सर्वप्रथम भव रोग का निदान करने वाला उत्तम वैद्य के समान योग्य गुरु होना चाहिए। फिर औषधि रोग-हर और बल वर्धक होना चाहिए । और रोगी को पथ्यसेवी, श्रद्धालु और दृढ विश्वासी होना चाहिए। आप देखेंगे कि यदि भव-रोग का चिकित्सक गुरु योग्य है—विद्वान् है औपधि भी उत्तम है और रोगी भी पथ्य सेवी हे तब क्या वह नीरोग नही होगा ? लाभ नही करेगा ? अवश्य ही स्वास्थ्य-लाभ करेगा, इसमे रत्तीभर भी शवा को लाने की आवश्यकता नहीं है । इसलिए आवश्यकता है उक्त तीनो योगो के मिलाने की। यदि गुरु रूपी वैद्य योग्य है, किन्तु रोगी अपथ्य-सेवी है, अथवा रोगी तो पथ्य-सेवी है, किन्तु वैद्य योग्य नहीं है अथवा दोनो ही ठीक हैं, परन्तु औपधि ठीक नहीं है तो बताओ रोगी कैसे नीरोग हो सकता है। इसलिए उक्त तीनो के ही योग्य होने की आवश्यकता है, तभी भवरूपी रोग दूर होगा। आज हम लोगो को सर्वगतियो मे श्रेष्ठ मानव जीवन मिला है, सद्गुरु का भी सुयोग मिला है और भगवान की वाणी रूपी सर्वरोगापहारी औपधि भी प्राप्त है। ऐसे उत्तम सयोगो के मिलने पर हमारा भव-रोग मिट सकता है, जीवन मगलमय हो सकता है और आत्मा का कल्याण हो सकता है । उक्त तीनो सयोग कितने मूल्यवान है, इसका क्या कोई अनुमान लगाया जा सकता है ? मारवाडी मे कहावत है कि 'मैदा लकडी का क्या भाव कि पीडा जाने है ? ऐसे तो वह घर-घर मे पड़ी हुई है, परन्तु कौन पूछता है। परन्तु जब चोट लगती है, तभी मैदा लवडी याद आती है। औषधि का मूल्य कब है ? जब कि रोग हो और उसे दूर करने की इच्छा हो। त्रिरोग नाशिनी जिनवाणी : ससार के प्रत्येक प्राणी को अनादि काल से जन्म, जरा और मृत्यु ये तीन रोग लग हुये हैं । जब कोई प्राणी अपने इन रोगा को मिटाना चाहे, तभी प्रभु की वागी की कीमत है। जो प्राणी अपने रोगो को नही मिटाना चाहे, उसके लिए उसका क्या मूल्य है ?
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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