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________________ १२० प्रवचन-सुधा वे नी सौ वर्ष के बाद लिखे गये हो, परन्तु वे असत्य नहीं हैं। भगवान महावीर भी कहते हैं कि ये जानियो के वचन हैं। उन्होन रहा---'पानाद मन बोगी, चोरी मत करो, तो क्या ये वचन भये हैं ? कुशील नेवन मत तरी, या ममता को कम करो, तो पया ये वचन नये है ? ये तो उनके समय में भी थे और आज भी वही हैं। कोई उन्हे झूठा नही रह गरता है। अब रहा मवाल नि छह काया कि हिंसा नहीं करना । भगवान् ने रहा-हे साधु छह पाया था आरम्म-समारभ मतकर । खडी, गेर हरतान, सोना, चादी, होग पन्ना ये सब पृथ्वीकाय मे है, उनका तू सरम्भ, समारम्भ और जारम्भ हिमा मन करना । नदी, तालाब, झरना, मुला आदि के ममारम-आरम में भी जल याया के जीवो को विराधना होती है। अब यदि कोई कहे rि बरमात पे पानी मे जीव है, परन्तु झरने के पानी मे जीव नही है। ऐसे पहनेवाली मे पूछो कि उस पानी से प्यास बुझती है और उसमे नही बुपती है पया? प्यान तो दोनो से बुझती है। फिर यह कैसे कहते हो कि झरने के पानी मे जीव नहीं है ? प्रतिक्रमण पाठ में सब बाते माई हुई हैं। मब प्रकार की अग्नि सचित्त है। फिर भी आज अपने पो जानी मानने वाले कहत है कि बिजली मचित्त नहीं है। अरे, जैसे चूल्हे की लकटी-छाने गली अग्नि से आग लगती है वैसे ही भट्टी और बिजली के करेण्ट से भी आग लगती है। फिर कैसे रहते हो कि विजली मे अग्नि काया के जीव नहीं है ? कारबानो में जितनी मी मशीनरी चल रही है, वह सब अग्नि, पानी और हवा से ही चल रही है। __ अव दवाओ को लीजिए लोग कहते हैं कि हम तो इजेक्शन लेगे, गोली लेंगे, काढा, रस और चटनी लेंगे। परन्तु पढेि कि ये सब दवाए हैं, या नही ? किसी ने सरलता से निगली जा मकने वाली गोली बना ली, किमी ने मीठी वना ली और किसी ने चरकी-कडवी बना दी। परन्तु मूल भूत वस्तुएं तो वही वी वही हैं। आप ऐसा नहीं कह सकते कि अमुक ही दवा है और अमुक नहीं है। थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाय कि विजली मे जीव नहीं है परन्तु उससे चलने वाले पखे मे तो वायुकाया के जीव मरते है, या नही ? भगवान के ये वचन है कि जहा एक काय की हिसा हो रही हैं, वहा छह काय को हिंसा हो रही है। इस प्रकार भगवान के वचन तो पृथ्वी, जल, आँन मादि एक-एक काया की हिसा म छहो बाया की हिसा को पुष्ट कर रहे है। फिर भी यदि कोई कहे कि हम तो नही मानेंगे, तो उनके कहने से गया भगवान के वचन असत्य हो जावेंगे ?
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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