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________________ उत्साह ही जीवन है सब बाड़े में आगई, परन्तु हाथ की थपकी सबसे पहिले दूध देने वाली गाय को देंगे । कही भी जाओ-धर्म पक्ष में या संसार पक्ष में, सर्वत्र यही बात है। भगवान की दिव्य-देशना सुनने और अनुपम वचनामृत पान करने में ऐसे मग्न हुए कि वे बाहिरी संसार को भूल गये। उन्हें लगा कि हाय, मनुष्य भव की इतनी बहु मूल्य घड़ियों को मैंने आज तक इन विपय-भोगों में फंस कर व्यर्थ गवां दिया। ये संसार के भोग स्वयं तो क्षण भंगुर है, किन्तु जीव को अनन्त काल के लिए दुःखों के समुद्र में डालनेवाले हैं। फिर इस मनुष्य भव का पाना भी सरल नही है। अब जो हो गया, सो तो लौटनेवाला नहीं है, किन्तु अब जितना जीवन शेष है, उसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए । यदि अव चूक गया तो मनुष्यभव का पाना वसा ही कठिन हैं, जैसा कि अगाध समुद्र में गिरी हुई मणि की कणी का पाना बहुत कठिन है। इस प्रकार विचार करते करते उनके हृदय में आत्म-ज्योति जग गई। भगवान की दिव्य देशना समाप्त होते ही प्रसादिये भक्त तो 'मत्थएण बंदामि' कहकर रवाना होने लगे कि महाराज, आप सुख-शान्ति से विराजे, हम तो जाते हैं। किन्तु धन्नाजी वहीं चित्र-लिखित से बैठे रह गये, लोगों ने और साथ में आये स्वजन-परिजनों ने देखा कि धनाजी नहीं उठ रहे हैं, क्या बात है ? यह सोच विचार कर कोई उनके समीप खड़े रहे और कुछ लोग कुछ दूर पर आपस में बातें करते उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे। जब सारी सभा के लोग उठ गये और वातावरण शान्त हो गया, तब धन्नाजी उठकर खड़े हुए और भगवान से कहने लगे सरद्धया अरू परतीतिया सरे, रुच्या तुम्हारा वैण । अनुमति ले अम्मा तणी, संजम ले स्यू सैण ।। जिमि सुख होवे तिम करो सरे, या भगवंतरी कैण । काफंदी का धन्ना, वलिहारी जाऊ थारा नाजरी ।। हे भगवन, मैंने आपके वचनों पर श्रद्धा की है, रुचि आई है और है और प्रतीति हुई है । आपके वचन सर्वथा सत्य है, तथ्य हैं और अवित्तथ हैं । इनमें लेशमात्र भी झूठ नहीं है । यह मेरी आत्मा गवाही दे रही है । अव अन्तरंग दृष्टि के पलक खुल गये हैं, हृदय के बन्द कपाट उद्घाटित हो गये हैं । अतः हे भगवन, अब मैं माता की आज्ञा लेकर के संयम लूगा। भाइयो, वताओ-आप लोगों ने भी कितने ही वार व्याख्यान सुने है और यह भगवद् वाणी कर्णगोचर हुई है.---श्रवण की हैं। पर क्या कभी आप में से
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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