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________________ प्रवचन-सुधा हमको भी दर्शन करना चाहिये। वे अभी तक ऐसे सुकुमार बने हुए थे कि कभी उन्होंने गादी से नीचे भूमि पर पैर ही नहीं रखे थे। परन्तु आज उनमें नयी स्फूत्ति उत्पन्न हुई, नया जोश आया और चलने का ऐसा उत्साह जागा कि बिना सवारी के और घर के नौकर-चाकरों के विना ही अकेले नंगे पर भगवान के दर्शनार्थ चल दिये । लोग देखकर चकित हुए। _भाइयो, आज यदि कोई धन्ना सेठ जैसा व्यक्ति नंगे पैर बाहिर निकले तो क्या लोगों को आश्चर्य नहीं होगा। आज राजाओ के राज्य चले गये, प्रिवीपर्स वन्द हो गये। परन्तु महाराज गजसिंहजी जैसे व्यक्ति यदि बाजार में नंगे पैरों भावें तो क्या लोगों को आश्चर्य नहीं होगा? भाई, नर है तो घर वसाते भी देर नहीं लगती है। वह भी अपने समय का सबसे बड़ा धनी सेठ था। बत्तीस करोड़ सुवर्ण दीनार उसके घर में थी। उसके पिता के नाम से एक टकसाल भी थी । राजा-महाराजा लोग उनसे मिलने के लिए उनके ही घर पर आते थे, पर धन्ना सेठ किसी के यहां नहीं जाते थे। वे सदा अपने महल में ही रहते थे और उसके चारों ओर के उद्यान में ही घूमते-फिरते थे। कभी उससे बाहिर जाने का काम ही नहीं था। किन्तु जव धर्म भावना जागी तो धूल-धूसरित पदों से ही भगवान के समवसरण में पहुंचे। वहां की दिव्य छटा और अलोकिक वैभव देखकर, तथा भगवान की परम अमृतमयी वाणी को सुनकर दंग रह गये । वे विचारने लगे-ओं हो, मैं तो समझता था कि मेरे वरावर अतुल वैभव किसी के पास नहीं है। परन्तु यहां के वैभव की घटा तो निराली ही है । इसके सामने मेरा महल तो कुछ भी नहीं है । जिसके समवसरण में सोने और रत्नों के कंगरे और कोट हैं, तो उनके वैभव और द्धि का क्या कहता है ? भगवान को स्फटिक-रत्नमय सिंहासन पर विराजमान देखकर धन्ना सेठ ने तीन प्रदक्षिणाएं देकर नमस्कार किया और भगवान के सामने जाकर बैठ गये। ___ भाइयो, कौन सिखाता है नता? और जड़ता भी कौन सिखाती है। आत्मा ही सिखाती है। भगवान के समवसरण में बारह सभाएं थीं। चतुनिकाय देवों की चार सभाएं, मुनियों को मार्याओं की, श्रावकों की और पशुओं की। भगवान को देशना चालू थी । धन्ना के पहुंचते ही उनकी देशना उनको लक्ष्य करके होने लगी। क्योंकि वह हुंडी सिकारने-वाला आया था। माइयो, आप लोगों को भी तो कमाई देने वाला ग्राहक बच्छा लगता है यदि मार दग आदमियों से बातें कर रहे हों और इतने मे ही यदि कोई ग्राहक भाजाय, तो आप भी तुरन्त उससे पहिले बात करेंगे। आपकी गायें और भैसे
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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