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________________ उत्साह ही जीवन है हैं । दया का बड़ा वृक्ष है । उन्होंने पांत्र के सामने ढाई लाख की बोली वोली तो यह नहीं कि हुं नहीं दूंगा। मनुष्य को देने की हिम्मत चाहिए । हिम्मत हो तो मनुष्य सब कुछ कर सकता है। किसी ने कहा---अमुक भाई पहिले लिख देवें, लाखों की कमाई है । लोग उनको लक्ष्य करके कहते हैं-सेठ साह्न ! इधर आइये । वे कहते हैं-नाड़ा छोड़ करके अभी आता हूं। लोग मुख से कहते है कि पैसा हाथ का मैल है और फिर भी देते नही हैं। जब देने की भावना नहीं है, तो भाई, झूठ क्यों बोलते हो ? भाइयों, जोधपुर पीछे नही और सिवाना भी पीछे नही। सब महावीर की सन्तान कहलाते हो ? परन्तु हृदय के भीतर उत्साह की कमी है। जिस व्यक्ति में उत्साह भरा हुआ है वह मब कुछ कर सकता है । मैं पूछता हूं कि हाथी बड़ा है या सिंह ? हाथी से बड़ा कोई जानवर नहीं है। और सिंह कैसा ? तीन-चार फुट ऊँचा गधेड़े जैसा । परन्तु जब वह दहाड़ता है, तो सैकड़ों हाथी भयभीत होकर इधर-उधर भागते नजर आते हैं। इसलिए किसी को देखकर ऐसा विचार नहीं करना चाहिए कि यह दुबला-पतला है। पुराने आदमी कहा करते थे कि दुबला देखकर के लड़ना नही ।' भाई, मन उत्साह से भरा होना चाहिए और भीतर वीरता होनी चाहिए । पहिले के लोग उत्तम श्रेणी के मद्र भी होते थे और शूर-बीर भी होते थे। उनमें सर्व प्रकार की योग्यता होती थी। उनमें अटूट उत्साह होता था। इसलिए वे जो भी काम करना चाहते थे, उसे सहज में ही कर लेते थे। शूरवीर पुरुप जब तक नीद में रहते और ध्यान नहीं देते हैं, तब तक घोटाला हो जाता। परन्तु जब वे आंखें खोल देते है तो फिर सब घोटाला साफ हो जाता है। धन्नाजो की बत्तीस स्त्रियां थी 1 अपार वैभव था । उनके सुख का क्या कहना ? जिनको यह भी पता नहीं था कि सूर्य का उदय कब और किधर से होता है, तथा वह अस्त कब और किधर होता है। इसी प्रकार शालिभद्रजी भी परम सुखी थे कि जिन्हें अपने घर की अपार सम्पत्ति का पतर तक भी नहीं था। उन्हें घर का कुछ काम नहीं करना पड़ता था। उनकी मां ही घर का सारा कारोबार संभालती थी। एक समय उन्होंने नगर के जन-समुदाय को वाहिर जाते हुए देखा तो पूछा कि आज यह जन-समुदाय कहां जा रहा है। लोगों ने बताया कि उद्यान में भगवान महावीर पधारे हैं और सव लोग उनके दर्शनार्थ जा रहे है। उन्होंने देखा कि सपरिवार राजा और सारा नगर जा रहा है तो विचारने लगे कि मैं कैसा पुण्यहीन और मन्दभागी हूं कि मैंने आज तक उन महाप्रभु के दर्शन तक नहीं किये ? आज तो
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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