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________________ १०८ प्रवचन-सुधा बस दया कैसे पालेगा? नही पाल नरेगा ? अरे भाई, तुम लोगो ने दया का मतलव हो नहीं समझा है | तुम लोगो की दया तो योठो तक ही मीमित है। अभी आपके सामने कोई बदमाग किसी स्त्री को उडा ले जाना है और उसके साथ बलात्कार करके उसे सराव करता है, तो तुम क्या करोगे ? बैठे रहोगे, भाग जाओगे, या आँखे बन्द कर लागे ? क्या यह वीरता है ? अथवा मैं मर मिटू गा, पर उस स्त्री के सतीत्व की रक्षा करूंगा, ऐसा कहने वाला वीर है ? जव तक मनुप्या में धर्म, देश, जाति और समाज की रक्षा का भाव जागत नही होगा, तब तक वीरपने का भाव आ नही मक्ता । बरे कायर बन कर और दया-दया का नाम लेकर तो आप लोगो न दया का अर्थ ही बिगाइ दिया है। हाँ, दया पाली राजा मेघरथ ने । वे कायर थे क्या? नही ? वे शूरवीर थे । उन्होने तुरत छुरी से अपने शरीर का मास काट कर उसे दे दिया और दीन पक्षी की रक्षा की। क्या आप ऐसा कर सकते हैं ? क्या आप मे ऐमी शक्ति है । आप लोगो के हाथ मे तो अगुली को चीरा देना भी ममव नहीं है, तो अपने शरीर का मास काट कर देना कैसे सम्भव है ? देने-लेने की बात छोड दो। मरे, एक भूख से मरता भिखारी आया और चालीस दिन के भूखे हरिश्चन्द्र ने जिन्होंने दातुन तक नहीं की थी कहा कि मैं भूखा हू, मुझे खाना दो । तो वे स्वय भूखे रह गये, परन्तु उसे उन्होने अपने लिए आये हुए भोजन को दे दिया। पर आपकी आखो से आँसू आ रहे हो, भूखे मर रहे हो यदि कोई आकर के कहे कि हमको दो, तो क्या दे दोगे ? अरे, जसे तुम वैसे ही तुम्हारे गुरु भाई । वीर की सोहबत (सगति) वीर पुरुष ही करेगा और कायर की सगति कायर ही करेगा । देखो-धर्मरुचि नामक अनगार हलाहल विप पी गये। पर आज यदि हमारे यहाँ अन्ना आगया, तो कहते हैं कि नमक लाओ । माई, महावीर स्वामी कहते हैं कि स्योग दोप लगता है। पर आज कहत हैं कि यदि दोष लगता है, तो लगने दो । भाई, वीरो के गुरु वीर होते हैं और कायरो के गुरु कायर होते हैं। किन्तु जिसके भीतर काम करने का साहस ही न हो, वे लोग ससार मे क्या काम कर सकते हैं ? परन्तु मनुष्य को अपने उत्कर्प और उत्थान की भावना तो होनी ही चाहिए ताकि अवसर आने पर हृदय मे स्फूर्ति आ जाय । पर भाई, यदि देने का काम प तो है, बावजी । ढाई लाख रुपये, पाच लाख रुपये दिये जावें ? देखो -- शिवाने मे अभी मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई। उनके आकर के वोली हुआ करती है। उसकी वोली प्रारम्भ हुई। एक भाई यहा वैठे है दुबले-पतले । उन्होने ढाई लाख की बोली बोली। वे सबर मे आगे
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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