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________________ { २ 1 | स्तवनावली | स्तवन हावी शभुं । || राग धुपद || आई इंद्र नार || देशी ॥ सब करम जार, जिन सरन धार, तुम नाम सार, नवी सरत कार, अनुभव आधार, समयतरस जीनो ॥ स० ॥ १ ॥ नवोदधि अपार, करतार तार, जग सत्यवाह, सब जग आधार, तूही पास नाथ अजरामर कीनो ॥ स० ॥ २ ॥ सब मेट सोग, सब विषय जोग, कर आज योग, मिटे मनका रोग, तुम नाम लेत मोह नट जय कीनो ॥ स० ॥ ३ ॥ मम सर्यो काम, तुम चरन पाम, तुम धर्यो ध्यान गयो पाप नाम, तम आनंद दरसन कर लीनो ॥ स० ॥ ४ ॥ स्तवन ७? त्रीभुं । ॥ राग प्रभाति ॥ थोमीसी जिंदगी सुपनसी माया, इनमें क्यों मुरकाया रे || थो० ॥ टेक ॥ तन धन जोबन निकमें बिनसे, जिस पर मन रिकाया रे || थो० ॥ १ ॥ गरव जार जगमें न समाते, बादर जिम विरलायाहे रे ॥ थो० ॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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