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________________ श्रीमद्विजययानंदसूरि कृतछिनमें अनघ पद, विमल गिरीस ईस बेद गति चार गद ॥ रा ॥२॥ सुर गण इंद चंद नाचत पठत बंद, रचत संगीत गीत धपमप धुधु वंद। प्रागमदि अनट किट ध्रों ध्रों धोंक ध्रोट, त्रों त्रों सुखमदि अनंग नट नाश कर॥रा॥३॥ तलालों तलालों धिट निट किकम धंग, चमरि फिरत सुर अंगना सूरंग । धंद जय जय नाजिनंद नवि चकोर चंद, सिझगिरि ईस मम शिव वधूवर कर ॥ रा० ॥ ४ ॥ अजर अमर अज अलख आनंद घन, चिदानंद जगानंद राजत अन्यून घन । सेवक आनंद करो निजरूप रूप करो, आदिहीमें दान दीयो, पाप सब नाशकर ॥ रा॥५॥ एक नव तीन नव पंचही जनम धर, __ मुगती रमणी वर नरक तिर्यग हर । महानंद कंद __तूं विमल गिरि ईश वर, अनुचव रंग राज काज । मेरो आज कर ॥ राण ॥६॥ रोग सोग मान नंग जनम मरण संग, राग दोष मोह कोह विकट ' अनंग रंग। इत्यादि अनंत रिपु बीनमें विमार कर, आतम आनंद चंद सुधानंद वास कर ॥ रा० ॥७॥ -octop
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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