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________________ स्तवनावली। १३ स्तवन दशहूं। ॥ राग-केरवो ॥ ॥ मगर बतादे पाहामीयां, ए देशी ॥ मगर बतादे पियारीया में तो पूजुंजी रिपन जिनंद मगर ॥टेक॥रायण तरु तले चरण बिराजे, बीच बिराजे जिनराज ॥०॥ १॥ चउमुख दरस करूं ने सुख पाऊं, जिम सुधरे सब काज ॥ म॥२॥ विमलाचल मंझन सब सोहे, मंमन धर्म समाज ॥ म० ॥३॥ आतम चंद जिनंदजी नेटी, वेग मिले शिवराज ॥ म ॥४॥ स्तवन अग्यारहूं। ॥ राग लावणी ॥ सखीरी चल गढ गिरनारी ॥ यह चाल ॥ प्रजी विमलाचल राजे, जिहां प्रजु रिखन्न देव गाजे, जायके पूजन करना जेके, सब ही कर्म सुन्नट नाजे ॥ नविजन तुम क्यों आलस करते, तज दो अघ जेरा कर्म कंद हर बंधन टूटे; मिथ्या मत घेरा न तेरा शत्रु जग गजे॥॥१॥ प्रजुजी नान्निराय नंदा, काट सव कर्मनका फंदा, नये जगमें सुरतरु कंदा, सिमरो धर्म के आनंदा, निजगुण सत्ता चिद्घन प्रगटी पुण्यरास श्क तान. अजर
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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