SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली । जातहे वैरण नैकी, रिखन जिनंद उहाइ ॥स॥ नावत विमलाचल जो फरसे, पंच नवे शिवरा।। अव हम तुमरो नातो टूटो, अब हम केम ठरा॥ स॥५॥ आदि जिनंद गिरीद जो लेट्यो, पाप घूक अंधरा । जयो जगदीसर श्री विमलेसर, चरण सरण तुम आश् ॥ स ॥६॥ आगे अनंत मुनि तें तार्या, वेर न कीनी कांरी।हुं तुम बालक सरण पर्यो हुँ, नेक नजर करो सां॥ स ॥७॥ आतमराम नाम अविनासी, मुक्ति रमणी वरवाश्री । सुमति हिंमोले सब सखीयनसें, आनंद मंगल गार ॥ स ॥ ७॥ स्तवन नवमुं। ॥ राग--तराना॥ राजत आनंद कंदरी विमल गिरी राजत आनंद कंदरी, रिखव जिनंद चंद सेवे सुर नर वृंद राजत ॥ टेक ॥ पुंमरीक गणाधिप पण कोमी मुनिवर, साग्र शिवनार वर करमको कंद हर । इत्यादिक अनंत मुनि सिश्नको थान तूं, रिखवदेव जगदीश मुक आस नर ॥ राण ॥१॥ रत्नवी जे अन्नवी नीरखे न गिरि उवि, पाप तम पटल विनाशक सद रवि । दायक जिनंद दियो
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy