SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली | AN AMIA 2 १४७ कंचन कामनी संग | कमले क्युं यावदांजी ॥ An क० ॥ १ ॥ मनुष्य जनम यदा ॥ निंदमें क्युं सोई रेंढा । शुपनशी माया तेनु । फेर नहीं पावदांजी ॥ क० || २ || प्रभु हे पुरनचंद । त्र्यश्वसेन राय नंद | धन दिन आज सामा | प्रभु घर यावदांजी ॥ क० ॥ ३ ॥ शीफत करां में केती । जिजान तो नांही रेंदी | सुर गुरु गुण तुं सांदा । पार नहीं पावदां जी ॥ क० ॥ ४ ॥ मनके मोहन पामी, पुरतो पट्टी के स्वामी । अव तो न रखो खामी । वीरविजे गावदांजी || क० ॥ ५ ॥ श्री घोघामंकण नवखंमा पार्श्व जिन स्तवन । घनघटा जुवन रंग छाया, नव खंमा पाशजि पाया ॥ त्र्यांकणी ॥ प्रभु कमत हवीकुं हवाया । विषधर परजलती काया | दिल दया धरी के ठोमाया । सेवक सुख मंत्र सुणाया । क्षणमें धरऐंद्र बनाया ॥ घ० ॥ १ ॥ में और देवनकुं ध्याया । सब फोगट जनम गमाया । सुनो वामाराणीका जाया । कुछ परमारथ नहीं पाया ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy