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________________ श्रीमदार विजयोपाध्याय कृत-- राणी जी मारा राज ॥ प्रीतः ॥ १७!! गुण गावे मिली देवाजी मारा राज। वीर विजय मांगेआतम लदमी मेवा जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ११ ॥ -ee श्रीजिराममण चिंतामणी पार्श्व स्तवन । ॥ राग दादरी ठुमरी भेद ।। दिल विसरामी चिंतामण स्वामी रे ॥टेक॥ मोहन मुरती पाशजी तोरी रे, अवर न जोमीरे, चित्त लीयो चोरी रे ॥ चिं॥ १॥ अंतरगतकी अंतरजामी रे, कहुं शीर नामीरे, सुनो मेरे स्वामी रे ॥ चिं० ॥२॥ मोहरायने मेनुं फुःख दीया रे, सबी बुट लीयारे, जुलम ही कीयारे ॥ चिंग ॥३॥ तुम बिन कौन सुने प्रजु मोरी रे, शरण गत तोरी रे, खबर लियो मोरी रे ॥ चिं ॥४॥ दासको आश प्रन्जु पाशजी पूरो रे, करम सब चूरोरे, बजे जय तूरो रे ॥ चिं० ॥५॥ वीरविजय कहे पाशजी पायो रे, जीरे जब आयोरे, दुःख विसरायोरे ॥ चिं० ॥६॥ श्रीपट्टीममन पार्श्वजिन स्तवन । कर ले पारश संग । प्रजु हे अनंग जंग ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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