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________________ १४८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत- ज्युं फुटा ढोल बजाया ॥ घ० ॥ २ ॥ सुपि चामीकर नरमाया । में पीतल हस्ते पाया । मुजे हुवा बहु दुखदाया । करमोंने नाच नचाया। इस विधधके बहु खाया ॥ घ० ॥ ३ ॥ घोघा मंगण सुख दाया | जग बहु उपकार कराया । नवखंमा नाम धराया । में सुणकर शरणे आया । उद्धार करो महाराया ॥ घ० ॥ ४ ॥ हुवा चतुरमास मुज आया । किस कारण अब बेठाया । यो मन बंबित सुख दाया । हुं प्रेमे प्रमुं पाया । सेवकका काज सराया ॥ घ० ॥ ५ ॥ शर युग निधि दंडु कहाया । जला अश्विन मास सोहाया । दीवाली दिन जब आया । में आतम आनंद पाया। एम वीर विजय गुण गाया ॥ घ० ॥ ६ ॥ प्र स्तवन बीजुं । नवखंमा स्वामी | आप बिराजो घोघा राहेरमें, हांहां रे घोघा शहरमें || नव० ॥ कणी ॥ देश देशके यात्री यावे, पूजा गी रचावे | नवखंमाजी नाम समरतां । पूरण परचा पावेजी ॥ नव० ॥ १ ॥ अश्वसेन वामा सुत केरी, मूरति मोहनगारी | चंद्र सूरज आकाशे चमिया, तुम
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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