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________________ __ ३५ म०७ : वाक्यशुद्धि तथा जमीन जान यो न कहे कि करने योग्य है। ' . ' 'वध्य है यह चौर सरिता घाट अधिक सुरम्य है ॥३६।। __ कहे जमीनवार को जमीन धनार्थी स्तेन' को। बहुत सम है घाट सरिता के कहे यो वचन को ॥३७॥ तथा नदियाँ पूर्ण ये तरणीय भुज-बल से सही। नाव से तरणीय प्राणी' पेय यो बोले नही ॥३८॥ पूर्ण भूत व अगाध, अन्य-प्रवाह से जल बढ रहा। हैं बहुत विस्तारवाली यो न बोले मुनि महा ॥३९॥ पापकारी कार्य जो अन्यार्थ कत क्रियमाण है। लख उन्हें सावध भाषा न बोले गुणवान हैं ।।४०॥ सुष्ट पक्व, सुच्छिन्न, कृत, हृत, मृत,' सुनिष्ठित, लष्ट' हैं। ये सभी सावध भाषाए तजे मुनि शिष्ट है ।।४।। पक्व, छिन्न'' फिर लष्ट गाढ को क्रमश यो बोले सुविचार । यत्न-पक्व यह यत्न-छिन्न यह यत्न-लष्ट है गाढ प्रहार ।।४२।। *वस्तु सर्वोत्कृष्ट यह व पराय, अतुल, अनन्यतर । अविक्रेय, अवाच्य और अचिन्त्य न कहे मान्यवर ।।४३।। सब कहूंगा, पूर्ण है यह, यो न बोले मुनि कही। किन्तु पूर्वापर सभी कुछ सोचकर बोले सही ॥४४॥ सुष्टु क्रीत विक्रीत अथवा क्रेय यह अक्रेय है। माल यह लो इसे बेचो वचन यह अश्रेय है ॥४५॥ अल्प-अर्घ्य-महार्घ्य के क्रय-विक्रयो मे कार्यवश। बोलना यदि पड़े तो अनवद्य मुनि बोले सरस ।।४६॥ सुष्टु पक्व,' सुच्छिन्न १ चोर। २ इसका पानी प्राणी तट पर बैठे पी सकते हैं। ३ अच्छा पकाया । ४ अच्छा छेदा। ५ अच्छा किया। ६ अच्छा हरण किया शाक की तिक्तता आदि । ७ अच्छा मरा है दाल या सत्तू मे घी आदि । ८ अच्छा रस निष्पन्न हुमा है । ६ बहुत ही इष्ट है चावल आदि । १० मारभ करके पकाता है । ११ प्रयत्न पूर्वक कटा हुआ है।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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