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________________ ३४ दशवकालिक गाय दुहने योग्य बछड़े दमन करने योग्य है। भार-हल-रथ' योग्य हैं ये यो न बोले प्राज्ञ है ॥२४॥ युवक बैल गऊ दुधारू और ये छोटे-बड़े । बैल धोरी है कहे यो मनि जरूरत जो पड़े ।।२५।। तथा मुनि उद्यान-पर्वत या वनो मे देखकर। बड़े तरुओं को वहाँ बोले न ऐसे प्राज्ञवर ॥२६॥ महल, स्तम्भ व सदन, तोरण परिघ' अर्गल योग्य हैं। - और जलकुडी व नौका के लिए उपयोग्य हैं ॥२७॥ काष्ठ-पात्री, पीठ हल या मयिक कोल्हू के लिए।। वृक्ष ये उपयुक्त हैं सब नाभि अहरन के लिए ॥२८॥ शयन, प्रासन, यान अथवा उपाश्रय के योग्य हैं। भूत-उपघातक गिरा बोले न ऐसी प्राज्ञ हैं ॥२६॥ तथा मुनि उद्यान-पर्वत या वनो में देखकर । बड़े तरुनो को वहाँ ऐसे कहे मुनि प्राज्ञवर ॥३०॥ जातिमान, सुदीर्घ, वृत्त, लिए हुए विस्तार हैं । कहे शाखा-प्रशाखा-युत दर्शनीय अपार हैं ॥३॥ पक्व फल हैं पका खाने योग्य टालक' है तथा । तोड़ने या फाँक करने योग्य न कहे सर्वथा ॥३२॥ भार सहने के लिए ये आम्र अति असमर्थ है। भूतरूप व बहुत निर्वतित' कहे संभूत' है ॥३३॥ पक्व या कि अपक्व औषधियाँ व फलियाँ युक्त है। काटने भूनने योग्य न कहे या पृथु-खाद्य है ॥३४॥ रूढ बहु सम्भूत स्थिर उच्छृत व प्रसृत" है तथा। और गर्मिती धान्यकण से सहित है यो बोलता ॥३५॥ १. भार बहने योग्य, हल वहने योग्य तथा रय बहने योग्य हैं। २ नगर-द्वार को आगल को परिघ और गृह-द्वार को आगल को अगला कहा जाता है। ३. गुठली-रहित । ४ कोमल । ५. प्राय निष्पन्न फलवाले हैं। ६ एक साथ उत्पन्न बहुत फलवाले । ७. निडवा बनाकर खाने योग्य । ८ अकुरित । निष्पन्न प्राय.। १०. ऊपर उठाना। ११ भुट्टों से रहित । १२ भट्टों से सहित ।।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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