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________________ अ०७ : वाक्यशुद्धि परुष'-भाषा और गुरु-भूतोपघात-करी अहो। । सत्य भी हो तो न बोले क्योकि पापाऽऽगमन हो ॥११॥ कहे काने को न काना, क्लीव को फिर क्लोव है। कहे रोगी को न रोगी, चोर को भी चोर है ॥१२॥ उक्त या तत्सम वचन जिससे कि चोट लगे सही। चरित-दोष-अभिज्ञ, प्रज्ञावान त्यो बोले नही ॥१३॥ इस तरह हे होल | गोलक' | वृषल या फिर स्वान है। - द्रमक ! दुर्भग' | आदि ऐसे शब्द प्राज्ञ नही कहे ॥१४॥ अरी दादी व परदादी मां परी । मौसी | उसे । हे बुआ | भानजी ! पुत्री | या कि पोती नाम से ॥१५॥ हे हले । भट्टे । हली अन्ने व स्वामिनि | गोमिनि । । " अरी होले व गोले | वृषले 1, न यो बोले गुणी ॥१६॥ नाम या स्त्री-गोत्र से. फिर उसे मुनि सम्बोधता। _ यथोचित निर्देश कर आलापता संलापता ॥१७॥ पिता| दादा व परदादा | भानजा | मातुल तथा।। पुत्र ! चाचा और पोता यो नही सबोधता ॥१८॥ अन्न | हल हे भट्ट | स्वामिन् होल गोमिन् गोल रे । " वृषल आदिक शब्द से नर को न सबोधित करे ॥१६॥ पुरुष-गोत्र व नाम आदिक से उसे सम्बोधता । यथोचित निर्देश कर आलापता सलापता ॥२०॥ जहाँ तक पचेन्द्रियो मे स्त्री पुमान् न जानता। - वहाँ तक उनके विषय मे जाति कह लापता ॥२१॥ त्यो मनुज, पशु और पक्षी सरीसृप को देखकर।" स्थूल, तुन्दिल, वध्य, पाक्य न कहे उनको भिक्षुवर ॥२२॥ पुष्ट है परिवृद्ध है सजात, प्रीगित है सही। . . महाकायिक है जरूरतवश कहे मुनिवर यही ॥२३॥ १ कठोर भाषा । २ आचार भाव के दोषों को जानने वाला । ३ जार पुन । ४ कगाल । ५. हतभागी। ६ साप आदिक पेट के बल पर चलने वाले।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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