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________________ सातवॉ अध्ययन वाक्यशुद्धि *जान प्रज्ञावान सम्यग चार भाषाएँ तथा। उभय से सीखे विनय' पर दो न बोले सर्वथा ॥१॥ सत्य मे भी जो अवाच्य व मिश्र फिर मिथ्या कही। बुद्धजन से अनाचीर्ण उसे सुधी बोले नही ।।२।। असदिग्ध व अकर्कश निरवद्य जो भाषा कही। सत्य या व्यवहार सुधि-जन सोचकर बोले सही ॥३॥ जो गिरा सदिग्ध भ्रामक या ध्रुवघ्ना हो अगर । सत्य या व्यवहार भाषा भी न बोले धीरवर ॥४॥ तदाकार' अतथ्यभाषी भी अघो से स्पृष्ट हो । बोलता जो झूठ उसके लिए क्या कहना अहो ॥५॥ वहाँ जायेगे कहेंगे कार्य होगा अमुक ही मैं करूँगा कार्य यह अथवा करेगा यह सही ॥६॥ भविष्यत् या भूत साप्रत-काल मे ऐसी अहो । ___ सगकित, निश्चयकरी भाषा तजे जो धीर हो ॥७॥ जो अनागत-भूत-प्रत्युत्पन्न -भाव यहाँ रहे। यदि न जाने तो वहाँ फिर 'एव मेव" नही कहे ।।८।। जो अनागत-भूत-प्रत्युत्पन्न-अर्थ यहाँ रहे। हो अगर शका वहाँ तो 'एव मेव' नही कहे ॥६॥ जो अनागत-भूत-प्रत्युत्पन्न-अर्थ यहाँ रहे। हो अगर निशंक तो फिर 'एव मेव' वहाँ कहे ॥१०॥ १. शुद्ध प्रयोग । २, वाह्य वेप अनुसार स्त्री वेषधारी को स्त्री या पुरुष वेयधारी को पुरुष कहने रूप । ३ वर्तमान काल । ४. पदार्थ । ५ -ऐसा ही है।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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