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________________ दशवकालिक शस्त्र परिणति के बिना मारुत सचित्त सुकथित है। हैं अनेको जीव जिनका भिन्न ही अस्तित्व है ॥१२॥ शस्त्र-परिणति के बिना सब हरित कथित सचित्त है। है अनेकों जीव जिनका भिन्न ही अस्तित्व है ॥१३॥ अग्र-बीजक, मूल-बीजक, पर्व-बीजक तद्यथा । . स्कन्ध-वीजक, बीजरुह, संमूच्छिमक है तृणलता ॥१४ill शस्त्र-परिणति बिन, सबीजक हरित कथित सचित्त है। हैं अनेकों जीव जिनका भिन्न ही अस्तित्वं है ॥१५॥ और त्रस प्राणी अनेको जो यहाँ पर कथित है। . - तद्यथा अंडज, जरायुज, रसज, पोतज प्रथित है ।।१६।। स्वेदजोद्भिज्ज, -- समूच्छिम, औपपात सकर्म है। ... . ., . इन - किन्ही का सामने आना व -जाना धर्म है ॥१७॥ गात्र का सकोचना --या. फिर प्रसारण ध्वनन है। .. घूमना, डरना, पलायन ज्ञात. गमनागमन है॥१८॥ और जो कीड़े, पतगे, कुथु अथवा , चीटियाँ। . . सभी द्वीन्द्रिय सभी त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिया ।।१९।। सभी पंचेन्द्रिय व तिर्यग् सभी नारक मनुज भी। - - सुर सभी हैं तथा सुख के इच्छु हैं प्राणी सभी ॥२०॥ यही जीवनिकाय छटा काय त्रस निश्चय कहा। अत. हिसा छोड़ दो यह सीख आगम दे रहा ॥२१॥ नही दण्डाऽरंभ इन षटकाय जीवों का सही। करे करवाये तथा फिर भला भी समझे नही ॥२२॥ त्रिविध-त्रिविध मनोवचन तन से न करता उम्र-भर। नही करवाता व अनुमोदन न करता आर्यवर ॥२३॥ पूर्वकृत का प्रतिक्रमण निन्दा व गर्दा कर रहा । मात्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! सतत अघ हर रहा ॥२४॥ .
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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