SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा अध्ययन षड्जीवनिका 7 *सुना, श्रायुष्मन् । यहाँ आख्यात स्थविर महान् से । यो छः जीवनिकाय' नामक अध्ययन मैंने इसे ॥१॥ श्रमण भगवत् वीर काश्यप से प्रवेद्रित है सही । 1 T + · i अध्ययन यह श्रेयकर है लिए धर्म का सद्बोधं इसका सूक्त है प्रज्ञप्त सम्यक् कह रहा तुम से वही || २ || 2 j कौन - सा षट्जीव समुदय नाम वह अध्ययन ' है ।' कथित जिसमें श्रमण भगवत् वीर काश्यप वचन हैं ॥४॥ 1 1. प्रवेदित प्रज्ञप्त है कल्याणकर उसका पठन । "धर्म" का सद्बोध जिसमे, " करूंगा उसका मनन ||५|| ✓ 11. यह छजीवनिकाय नामक अध्ययन ' (2) श्रमण भगवंत् वीर काश्यप से आत्मा के महा । हितकर है कहा ||३|| पठन -अध्ययन यह श्रेयंकर है लिए आत्मा के महा । 1074 धर्म का संबोध इसका पठन हितकर है कहा ॥७॥ भूमि अप्क़ायिक वनस्पतिकायिक पुन. } शस्त्र - परिणति के बिना पृथ्वी सचित्त सुकथित है । V 4 4 مو } व तेजो-: वायुकायिक तद्यथा । सकाय प्राणी हैं तथा ॥ ८॥ प्रज्ञप्त है । प्रवेदित सूक्त है ॥६॥ हैं अनेको जीव जिनका भिन्न ही अस्तित्व है || || > J शस्त्र - परिणति के बिना पानी सचित्त सुकथित है । .. .. हैं, अनेको जीव जिनका भिन्न 1 11 ६ शस्त्र-परिणति के बिना पावक सचित्त " ही अस्तित्व है ॥ १० ॥ i 1 } कथित है । ..हैं अनेको जीव जिनका भिन्न ही अस्तित्व है ॥ १ ॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy