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________________ 35 'वृहच्छब्दरत्न' और 'लमाब्दरत्न दो व्याख्याएँ लिखी हैं । कई विद्वानों का मत है कि लघु शब्द नागेशमदद ने लिखाकर अपने गुरु के नाम से प्रसिद्ध कर दिया । आचार्य वरदराज सिद्धान्तकौमुदीकार को जि दीक्षित के शिष्य प्राचार्य वरदराज ने 'लघु सिद्धान्त कौमुदी' की रचना की । इनका समय 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वीकार किया गया है। ये भट्टो जिदीक्षित के समकालीन थे । प्रौढ़ जिज्ञासुओं के लिए वरदर राजाचार्य ने 'मध्य सिद्धान्त को मुदी' नामक दूसरा भी ग्रन्थ लिखा । परन्तु 'मध्यको मुदी' लघु सिद्धान्त कौमुदी की भाँति लोकप्रिय न हो सकी । लघु को मुदी संक्षेप में है - -------- करोम्यहम् । पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्" की अपनी प्रतिज्ञा में आचार्य वरदराज सर्वथा सफल हैं । परन्तु 'मय सिद्धान्तकौमुदी में न तो विशेष सक्षम ही हो पाया और न पूरी अष्टाध्यायी ही उसमें समाविष्ट हो पाई है । लघु सिद्धान्त को मुदी का परिमाण 32 HEार के छन्द अनुष्टुप् की संo से 1500 है । व्याकरण जिज्ञासु लघु सिद्धान्त कौमुदी का अध्ययन करते हैं और प्रौट मति मध्य सिद्धान्त कौमुदी का ही अध्ययन करना पसन्द करते हैं क्योंकि लगभग 4000 सूत्रों में से 2315 सूत्र तो मध्य सिद्धान्त को मुदी में भी पढ़ने पड़ते ही हैं । इसके विपरीत लघु सिद्धान्त को मुदी में कुल 1277 सूत्र ही लिए गए हैं। यह कौमुदी मध्य को मुदी की अपेक्षा संक्षिप्ततर ही नहीं है अपितु इसका प्रकरण विन्यास क्रम भी अधिक युक्तिसंगत है । यह इस प्रकार है - 1. संज्ञाप्रकरण, 2. सनि, 3. सुबन्त, 4. अव्यय, 5. हिन्त 6. प्रक्रिया, 7. कृदन्त, 8. कारक, १. समास, 10 तद्वित एवं ।।. स्त्री-प्रत्यय । पाणिनीय व्याकरण शास्त्र के प्रविविक्षों के लिए यह
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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