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________________ है । विश्व में किसी भी इतर प्राचीन भाषा का ऐसा परिष्कृत व्याकरण आज तक उपलब्ध नहीं होता। आचार्य पाणिनि के अनेक नाम प्रसिद्ध हैं - पाणिनि, दाक्षीपुत्र, शालातुरीय, आहिक, शाल डिक एवम् पाणिनि । पाणिनि का समय लगभग 2900 वि० पू0 माना जाता है । पाणिनि का कुल अत्यन्त सम्पन्न था । उसने अपने शब्दानुशासन के अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए भोजन का प्रबन्ध रखा था । अष्टाध्यायी के 'उदक् च विपाशः . वाहीक ग्रामेभ्यश्च' इत्यादि सूत्रों तथा इनके महाभाष्य से प्रतीत होता है कि पाणिनि का 'वाहीक' देश से विशेष परिचय था । अत: पाणिनि वाहीक देश वा उस के असिमीप का निवासी होगा। पं0 शिवदत्त शर्मा ने पाणिनि का शाल डिक नाम पितृ-व्यपदेशाज माना है और पाणिनि के पिता का नाम लइक लिखा है । यज्ञेश्वर मल ने भी शाल इिक के पिता का नाम लड़क ही लिखा है । पाणिनि की माता का नाम दाक्षी तथा ममेरा भाई दाक्षायन व्याडि को बताया है । मृत्यु के विषय में विदित होता है कि इनको सिंह ने मारा था । प चतंत्र के अधोलिखित प्रलोक से इसकी पुष्टि होती है : सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहरत प्राणान प्रियान् पाणिनैः, मीमासाकृतमुन्ममाथ सहसा हस्ती मुनि जैमिनिम्। जान्दोज्ञाननिधि धान मकरो वेलाटे पिङगलम् , अज्ञानावृत्तयेत्सामतिरां को यत्तिरपचा गुणैः ॥ 1. अदापयायो 4/214, ____2. वही, 4/2/117.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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