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________________ शाकल्य पाणिनि ने शाकल्य आचार्य का मत अष्टाध्यायी में चार बार उद्धत किया है । शौनक और कात्यायन ने भी अपने प्रातिशाख्यों में शाकल्य के मतों का उल्लेख किया है । अप्रातिशाख्य में शाक्ल के नाम से उधृत समस्त नियम शा कल्य के ही हैं । शाकल्य व्याकरणशास्त्र है - शाकल्चरण, पदपाठ, माध्यन्दिन पदपाठ आदि । सेनक पाणिनि ने सेनक आचार्य का उल्लेख केवल एक सूत्र में किया है। अट Tध्यायी के अतिरिक्त सेनक आचार्य का कहीं भी उल्लेख/ नहीं है इसलिए इनके विषय में अधिक जानकारी नहीं प्राप्त होती है । औदम्बरायण आचार्य औदुम्बरायण का नाम पाणिनि ascाध्यायी में केवल एक स्थान पर मिलता है । इसके अतिरिक्त कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता । सम्भवत: औदुम्बरायण शाब्दिकों में प्रसिद्ध स्फोटतत्व के आध उपज्ञाता थे । पाणिनि एवं उनका व्याकरणास्त्र संस्कृत भाषा के प्राचीन व्याकरणों में से एकमात्र पाणिनीय व्याकरण ही पूर्णरूपेण प्राप्त होता है। यह प्राचीन आर्ष वाइमय की अनुपम निधि है । इससे देववाणी का प्राचीन और अवांचीन समस्त वाइमय सूर्य के प्रकाश की भाति प्रकाशमान
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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