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________________ 212 घटक 'यकार' का लोप होता है । 'मनुष्य' शब्द 'मनोजतिावाक्य' इप्त सूत्र के द्वारा तद्धित प्रत्ययान्त है, मत्सी शब्द 'मत्स्यस्य द्याम् से यलोप करने पर बना है। यद्यपि गौरादिगण में इन वार्तिकों से सिद्ध सभी शब्द 'गौरा दिगण' में पठित मिलते हैं, फिर भी 'गौरा दिगण' में इन शब्दों का पाठ अनार्ष अाधुनिका है ऐसा इन वार्तिकों की सत्ता से प्रतीत होता है। अन्यथा गौरीदित्वात्' ही 'डी' सिद्ध होने से उसके करने के लिए इस वार्तिक का अनुत्थान ही होता । ऐसा प्रदीप एवं म जरी में स्पष्ट है। यह वार्तिक भाष्य की दृष्टि से वाचनिक है । न्यासकार ने 'पापकर्ण' इत्यादि सूत्र के अनन्तर 'अनुक्त समुच्चया' से 'चकार' के द्वारा इस वार्तिक में कहे गये 'हयादिकों' का संग्रह हो सकता है और उसी से 'डी' भी सिद्ध है । अत: यह वार्तिक गतार्थ है । मत्स्यस्य ड्याम् 'सूर्य तिष्यगस्त्यमत्स्यानां य उपधायाः' इस सूत्र के भाष्य में 'सूर्यमत्स्ययोईयाम्' यह वार्तिक पठित है । सूर्यशब्द का उत्तर वार्तिक में भी ग्रहण होने के कारण वहाँ 'चकार' के बन से 'याम्' इस पद की अनुवृत्ति करने से 'सूर्यस्य इयाम्' यह अर्ध उत्तर वार्तिक से गतार्थ हो जाने के कारण ------- 1. कात्यायन वार्तिकम् । 2. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 1036. 3. अScाध्यायी, 6/4/49.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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