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________________ त्यब् 184 ने ध्रुवे इति वक्तव्यम्' 'अव्ययात् त्यप्'± सूत्र में भाष्यकार ने 'त्यब्नेव' इति वक्तव्यम्' वार्तिक का पाठ किया है । 'नि' शब्द से 'ध्रुव' अर्थ में 'त्यप्' प्रत्यय होता है यह वार्तिक का अर्थ है । 'नित्यः ' यह उदाहरण है । नियतं - सर्वकाले भवं नित्यमिति । जो सभी कालों में हो उसे नित्य कहते हैं । वा नामधेयस्य वृद्ध संज्ञा वक्तव्या: 'वृद्धिर्यस्याचामादिस्तबुद्धम् " इस सूत्र व्याख्या में भाष्यकार ने इस वार्तिक का उल्लेख किया है । यहाँ 'नामधेयपद' से माता पिता से किया जाने वाला आधुनिक 'देवदत्तादि रूप नाम' का ग्रहण है । अंत: 'एड. प्राचां देशे' इसकी चरितार्थता होती है । रूद्र मात्र को यदि नामधेय पद से ग्रहण करें तो इसी वार्त्तिक से 'वृद्ध' संज्ञा हो जाती है 'एड. प्राचां देशे' सूत्र व्यर्थ हो जाता है । उक्त विवरण प्रदीप उद्योत में स्पष्ट किया गया है । अतः देव 1. लघु सिद्धान्तकौमुदी, तद्वित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 926. 2. GcTearat 4/2/104. 3. लघु सिद्धान्तकौमुदी, तद्वित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 927. 4. अष्टाध्यायी 1/1/73. 5. पौरूषेधं नाम गृह्यते । देश' इति चरितार्थम् । उद्योत ।। प्रदीप 1 / 1 /73; आधुनिकमित्यर्थं अतएव 'एड. प्राच रूद्र मात्रस्यनाम्नो न ग्रहणं ग्रहणे तद्वै यर्थ्य स्पष्ट मेव
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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