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________________ 143 इसका फल तो वार्त्तिकका र इसलिए प्रस्थः, प्रश्न:, वहाँ पर इससे 'क प्रत्यय' का विधान होता है । स्वयं 'हिस्थास्ना' आदि के द्वारा निर्देश किया है । अविधः, विघ्न, आयुधम् इत्यादि प्रयोग सिद्ध होते हैं । 'घ' में इसकी साधुता नहीं होती है । I अल्वादिभ्यः क्तिन्निष्ठाव दाचय +2 'ल्वादिभ्यः इस सूत्र के भाष्य में यह वार्त्तिक पठित है । 'कारान्त ल्वादियों' से परे 'क्तिन्' प्रत्यय को निष्ठा के कार्य जैसा अति आदेश इस सूत्र से होता है । अतः कीर्णिः, गीर्णिः इत्यादियों में 'रदाभ्याम्' इससे 'क्तिन् तकार' को 'नत्व' होता है । 'नत्व' का ही अतिदेश इस सूत्र से होता है, न तु अन्य निष्ठा, विहित कार्यों का । 'लूनि:, पूनि इत्यादियों में 'ल्वादिभ्य: ' से 'नत्व' होगा | सम्पादिभ्यः क्विप् 4 'रोगाख्यायाण्वुल् बहुल म् सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पढ़ा गया है । 'सम्पादियों' से स्त्री अर्थ में इससे 'क्विप्' को विधान होता है । सम्पत्, आयत् इत्यादि सिद्ध होता है । ::0:: 1. लघु सिद्धान्तकौमुदी, उत्तर कृदन्त प्रकरणम्, पृष्ठ 787. 2. अष्टाध्यायी 8/2/44. 3. लघु सिद्धान्त कौमुदी, उत्तर कृदन्त प्रकरणम्, पृष्ठ 787. 4. अष्टाध्यायी 3/3/108.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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