SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० फूलोका गुच्छा। इसलिए उसमें कहीं कोई बड़ी नाव नहीं रहती, दो चार छोटी छोटी डोंगियाँ अवश्य ही कहीं कहीं किनारेके वृक्षोंसे बँधी हुई दिखलाई देती हैं। सहसा एक बालिकाने एक डोंगीपर चढ़कर अपनी साथिनसे पुकारकर कहा" आओ बहन, अपन एक मजेका खेल खेलें । " डोंगी पानी में उतरा रही थी। बालिका उसे उसकी रस्सी खींचकर किनारेकी ओर ले आती थी और फिर दूसरी ओर कुछ दूरतक पानीमें ले जाती थी। यही उसका मजेका खेल था। दूसरीने डरकर कहा-" ना बहन, मुझे तो डर लगता है—मैं डोंगीपर नहीं चढूंगी।" यह सुनकर पहली बालिका अपने खेलमें मस्त हो गई । कुछ देर पीछे दूसरीने कहा-" चपला, चल न ? बहुत खेल लिया, अव क्या खेलती ही रहेगी ?" परन्तु चपलाने सुनी अनसुनी कर दी; वह हँसने लगी और अपना मजेका खेल खेलने लगी। भाग्यकी बात है; अचानक रस्सी खुल गई और डोंगी नदीकी प्रबल धारामें बहने लगी। जो बालिका किनारे पर थी वह चिल्लाकर बोली, “ अजी कोई बचाओ! चपला बही जा रही है।" चपलाकी उमर चौदह वर्षसे अधिक नहीं थी। वह चिल्लाई नहीं—सावधानीसे डोंगीको पकड़कर बैठी रही । चिल्लाहट सुनकर बहुतसे लोग दौड़ आये, किन्तु किसीने भी उसे बचानेका साहस न किया-हाँ, कई समझदार लोग बालिकाकी मूर्खताकी समालोचना अवश्य करने लगे। इतनेमें एक बेजान-पहचानका आदमी कहींसे दौड़ता हुआ आया और नदीमें धड़ामसे कूद कर जिस ओरको डोंगी जा रही थी उसी ओरको तेजीके साथ तैरता हुआ जाने लगा। देखते देखते डोंगी और तैरनेवाला दोनों दर्शकोंकी दृष्टिसे परे बहुत दूर चले गये। जब कोई यह न बतला सका कि यह तैराक कौन था, तब लोग तरह तरहकी कल्पनायें उठाने लगे। कोई कहने लगा अवश्य ही वह कोई देव होगा-ऐसी विपत्तियोंके समय देवता अकसर सहायताके लिए आया करते हैं ! किसीने कहा-अजी नहीं, इस कलियुगमें देवता कहाँ रक्खे हैं-कोई साधु महात्मा होगा । आजकल ऐसे परोपकारके कार्य वे ही करते हैं। इसीके सिलसिले में पुरानी दुर्घटनाओंकी झूठी सच्ची और भी अनेक कथायें चल पड़ी । अन्तमें दर्शकगणोंने लड़के बच्चोंको डाँट दपट दिखलाते हुए अपने अपने घरोंका रास्ता लिया।
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy