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________________ ७९ है । यह सोचते सोचते उसका हृदय ' हाय हाय' करने लगा - उसने काँपती हुई आवाज से कहा - " हाय ! मैं बड़ा पापी हूँ ! " चपला । इसके बाद डाँकू कुछ समय तक चुप चाप पड़ा रहा- मानों वह भीतरसे बोलने के लिए कुछ बल संग्रह करनेकी चेष्टा कर रहा था । फिर कमलाप्रसाद के मुखकी ओर देखकर वह धीरे धीरे बोला - " मेरे समान पापी इस संसार में दूसरा नहीं - मैं नराधम हूं !" इसके बाद उसने आत्म- कहानी कहना प्रारंभ की। - कमलाप्रसाद सुनने लगा । ज्यों ज्यों रात बीतने लगी त्यों त्यों घरमें अंधकार अधिकाधिक बढ़ने लगा। बाहरकी हवा वृक्षोंके प्रत्येक पत्तेसे टकरा टकरा कर "हाय हाय' कर रही है। डाँकू अपनी आत्मकहानी रुँधे हुए कण्ठसे बराबर कह रहा है और उसे कमलाप्रसाद एकाग्रचित्तसे सुन रहा है । ८८ उसका हृदय विदीर्ण हो रहा था । जिस समय डाँकू अपने छोटे भाई और माताकी बातें कहते कहते रो उठा, उस समय कमलाप्रसाद एकदम चौंक पड़ा और डाँकूकी छातीसे लिपटकर रोते रोते चिल्ला उठा भैया ! भैया ! ! डाँकू पहले तो विस्मित होकर कमलाप्रसादके मुखकी ओर तीक्ष्ण दृष्टि से देखने लगा, परंतु तत्काल ही व्याकुल होकर उसने अपने दोनों हाथ उसकी ओर फैला दिये और उसे हृदयसे लगा लिया । घरकी मंद दीपशिखा एकाएक उज्ज्वल: प्रकाशमय हो उठी ! चपला । १ सरस्वतीके जलमें । एकाएक पूर आ जाने से सरस्वती नदी बड़े वेग से बह रही है । ईसाकी चौथी - सदीकी बात है; तब भी ग्रीष्म ऋतु में सरस्वती सूख जाती थी, किन्तु वर्षो में उसका पूर इतने प्रबल वेग से आता था कि अच्छे अच्छे होशयार मल्लाहों का भी उसमें नाव डालनेका साहस न होता था । थानेश्वर के बूढ़े और बच्चे सभी, अपना अपना काम काज छोड़े हुए नदीके किनारे क्रीडाकौतुक कर रहे हैं और -बढ़े बूढ़े उन्हें डर दिखा दिखा कर रोक रहे हैं । बच्चे किनारोंपर पानी उछाल उछालकर आनन्दित हो रहे हैं सरस्वती में बारहों महीना पानी नहीं रहता
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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