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________________ फूलोका गुच्छा। vvvwwwwwwwwwwwwwww~ wwwvvvvwwwwwwwwwwwwwwwwwwww न बतलाऊँगी तब फिर यह पुरुष मुझे बार बार पूछकर क्यों तंग करता है ? यह यहाँसे चला क्यों नहीं जाता ? सती स्त्री अपने स्वामीके लिए सब कुछ सहन कर सकती है। स्वामीके कल्याणके लिए अपना प्राण दान कर देना भी सती नारीका कर्तव्य है।" इन वाक्योंके उच्चारण करते समय जयमती गदापाणिकी ओर अतिशय कातर दृष्टिसे देखकर उन्हें उस स्थानसे शीघ्र चले जानेके लिए सकरुण प्रार्थना करती थी। गदापाणि इस समय भी सतीके सकरुण अनुरोधकी उपेक्षा नहीं कर सके, वहाँसे उसी समय चले गये । जयमतीपर बेतोंकी मार बराबर पड़ती रही। ___ गदापाणिके चले जानेपर लराराजाके निर्दय अनुचर और भी १४-१५ दिन जयमतीपर अत्याचार करते रहे। इस तरह सब मिलाकर २१-२२ दिन दुस्सह अत्याचार सहन करके और उस यंत्रणापर भ्रूक्षेप मात्र भी न करके उस परम साध्वीका प्राणपखेरू अपने लहूलुहान शरीरको छोड़कर उड़ गया और संसारके इतिहासमें अतुलनीय सहिष्णुता और पातिव्रत्यका एक जाज्वल्यमानः उदाहरण अंकित कर गया। ___ अपनी साध्वी पत्नीका स्वर्गारोहण-संवाद पाकर गदापाणिसे फिर स्वस्थ न रहा गया । वह शीघ्र ही लराराजाके दुष्कर्मोंका प्रतिफल देनेके लिए कटिबद्ध हो गया और एक बलशालिनी सेनाको एकत्र करके लराराजा पर चढ़ गया और उसे राज्यच्युत करके आप सिंहासनका अधिकारी हो गया। इसके पश्चात् उसने लराराजाको मारके उसके पापोंका उपयुक्त प्रायश्चित्त दिया । गदापाणिने गदाधरासिंह नाम धारण करके ईस्वी सन् १६८१ से १६९५ तक राज्य किया। पिताकी मृत्युके अनन्तर उसके पुत्र रुद्रसिंहने राज्यसिंहासनको सुशोभित किया । रुद्रसिंह आसामका एक सुप्रसिद्ध राजा हुआ । उसने अपनी माताकी कीर्तिको चिरस्मरणीय करनेके लिए जिस स्थानपर जयमतीपर अत्याचार किया गया था, वहीं 'जयसागर' नामका विस्तृत तालाब खुदवाकर और उसीके समीप 'जयदोल' नामका एक देवमन्दिर निर्माण करवाकर निजमातृभक्तिका परिचय दिया । शिवसागर जिलेके जयसागर तालाबका निर्मल जल आज भी वायुके झकोरोंसे नृत्य करता हुआ जयमतीकी कीर्तिकहानी, रुद्रसिंहकी मातृभक्ति और आसामके गतगौरवका प्रचार करता दिखलाई देता है।
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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