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________________ फूलोंका गुच्छा। डकरके ले जावेंगे और वध कर डालेंगे, तो हम लोगोंकी क्या दशा होगी? आपके जीवनप्रदीपके निर्वाण होनेपर आपकी यह दासी तो एक घडीभर भी जीती नहीं रह सकती है; तब आपके इन सोनेसरीखे बालकोंकी क्या अवस्था होगी? इसलिए मेरी प्रार्थना यह है कि आप इस पापराज्यको छोड़कर कुछ कालके लिए गुप्त हो जावें । यदि कभी जगदीश्वरके अनुग्रहसे शुभदिन आवेगा और भाग्यचक्रका परिवर्तन होगा, तो आप लौटके आ सकेंगे। आपका जीवन अमूल्य है। उसकी रक्षाके लिए अवश्य ही कोई उपाय करना चाहिए।" निदान गदापाणि पत्नीके कातर अनुरोधके आगे पराजित हो गये। गुप्तवेश धारण करके वे नागापर्वतकी ओर पलायन कर गये। .. इधर गदापाणिके पकड़नेके लिए लराराजाने बहुतसी सेना भेजी । सेनाने लौटकर राजासे उसके भाग जानेका समाचार सुनाया । दुर्बल और कापुरुष राजा गदापाणिके भाग जानेसे शंकित होकर उसका पता लगानेके लिए व्याकुल हो उठा। उसकी पत्नी जयमतीके पास दूत भेज कर उसने गदापाणिका पता पुछवाया, परन्तु जयमतीने अपने पतिके सम्बन्धमें कोई भी बात नहीं बतलाई। उसने कहला मेजा कि स्वामीका पता उसकी स्त्रीके द्वारा कदापि नहीं मिल सकेगा। दूतके मुँहसे यह बात सुनकर लराराजा क्रोधसे पागल हो गया । उसने आज्ञा दे दी कि जयमतीको इसी समय कैद करके ले आओ । आज्ञा पाते ही राजसेवक दौड़े गये और जयमतीको कैद करके राजाके समीप ले आये। लराराजाने पूछा “तेरा पति कहाँ छुप रहा है, शीघ्र बतला दे-नहीं तो बेतोंकी मारसे तुझे यमलोकका रास्ता बतला दिया जायगा।" जयमतीने दृढ़ताके साथ उत्तर दिया:___ "यह मैं पहले ही दूतके द्वारा आपसे कहला चुकी हूँ कि अपने स्वामीका पता मैं कभी नहीं बतालाऊँगी, फिर आप मुझसे बार बार क्यों पूछते हैं ? मेरी प्रतिज्ञा अटल तथा अचल है । आप मेरे शरीरपर यथेच्छ अत्याचार कर सकते हैं; परन्तु मेरे मनके ऊपर मेरा ही सम्पूर्ण अधिकार है-अन्य किसीका नहीं है। यह नश्वर शरीर चिरस्थायी नहीं है, यह मैं अच्छी तरहसे जानती हूँ । इसलिए आप मेरे द्वारा पतिके पता पानेकी आशाको छोड़ दीजिए।" लरा राजाने क्रोधसे हिताहितविवेकशून्य होकर आज्ञा दी कि “जयमतीको ले जाओ और इसे राजमहलके सम्मुख बाँध करके बिना विराम लिये बेतोंकी मार मारो ! इतना याद रक्खो कि यह मरने न पावे, केवल मारसे इसके शरीरको यंत्रणा
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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