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________________ वीरं-परीक्षा। उस दिनका युद्ध समाप्त होने पर झल्लकण्ठ अपनी छावनीमें सन्ध्योपासना कर रहा था। उस समय उसके अन्तःकरणमें भगवानके चरण कमलोंके बदले भद्रसामाकी भुवनमोहिनी मूर्तिके दर्शन होते थे। वह बहुत चाहता था कि मैं इस मूर्तिको भूल जाऊँ; परन्तु उसकी सारी ही चेष्टायें विफल होती थीं। अन्तमें वह कातर होकर अपने इष्टदेवसे प्रार्थना करने लगा-“हे प्रभो, हे दयासिन्धो, मुझे यह एकाएक क्या हो गया ? हे नाथ, मेरे हृदयमें यह किस प्रकारका भाव उत्पन्न होता है ? अपने चिर-शत्रुके साथ स्नेहसम्बन्ध जोड़नेकी लालसा मेरे चित्तमें क्यों उदित होती है ? जिसको अपने विषम बाणसे विद्ध करके प्रसन्न होना चाहिए, उसके चरणोंमें अपना हृदय अर्पण करनेकी यह विपरीत इच्छा क्यों होती है ? जिसके हृदयके रक्तसे अपने कर्तव्यका तर्पण करना चाहिए, उसके चरणोंकी अपने हृदयके रक्तसे पूजा करनेको जी क्यों चाहता है ? हे मदनदहन भगवन् , मुझे बल प्रदान करो और मेरे चित्तके क्षोभको शान्त करो।" ___ उपासना पूरी न होने पाई थी कि इतनेमें द्वारपालने आकर खबर दी "कोई दूत आपसे मिलना चाहता है ।" उपासना अधूरी रह गई। किसी अव्यक्त कारणसे उसका चित्त डावाँडोल होने लगा। उसके कानोंमें मधुर मधुर आशाओंकी ध्वनि गूंजने लगी। प्रबल वासनाकी झञ्झावायुने उसके संयमके दीपकको डावाँडोल कर दिया । अन्तमें उसने आज्ञा दे दी-“अच्छा उसे भीतर आने दो।" ___ दूतने आकर प्रणाम किया और मंत्रीके हाथमें एक पत्र देकर वह उत्तरकी प्रतीक्षा करने लगा। मंत्री काँपते हुए हाथोंसे उसे खोलकर बाँचने लगाः "स्वस्तिश्रीसमरविजयश्रीपूजितसचिवश्रेष्ठझल्लकण्ठमहोदयेषुसमर-कुशल वीरश्रेष्ठ, आजतक मेरे हृदयमें जिस आदर्श वीर-मूर्तिके देखनेकी उत्कण्ठा लग रही थी और जिस मूर्तिको अपने हृदयमन्दिरमें स्थापित करके मैं निरन्तर पूजा किया करती थी, उसका अवलोकन मैंने आपकी मनोरम मूर्ति में कर लिया है। यदि आप इस शत्रुकन्याका पूजोपचार स्वीकार करेंगे तो मैं अपनेको कृतार्थ समझूगी । इत्यलं विज्ञेषु । -राजकन्या भद्रसामा।" हर्षके आवेगसे झल्लकण्ठका हृदय उछलने लगा। वह उक्त पत्रको बार बार बाँचने लगा । कभी तो पत्र पर पूरा पूरा विश्वास करके वह सौख्यके शिखर
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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