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________________ फूलोका गुच्छा। लुप्त हुई स्मृति याद आगई है। उसने बहुत ही दुःखपूर्णस्वरसे कहा," अमिताभ !" सत्यवती-तुमने यह क्या सम्बोधन किया ? भिक्षु-तुम मुझे 'शरण भैया' कहकर पुकारा करो। सत्यवतीने चौंककर पूछा, “क्या तुम मेरे शरण भैयाको जानते हो ?" भिक्षु-यदि जानता होऊं, तो क्या आश्चर्य है ? सत्यवती–मैं उन्हें स्वप्नमें देखा करती हूं । गङ्गानदीके उत्तर में हिमालयसे सटा हुआ एक अरण्य है। सीताका जन्म वहीं हुआ था । बहुत ही सुहावना वन है। वहां सोनेके पक्षी तहां जहां वृक्षों वृक्षों पर उड़ा करते हैं और ऋषियोंके समान सरल स्वभावके मनुष्य वहां निवास करते हैं। उसी वनमें मेरे शरण भैया रहते हैं। भिक्षु-नहीं, मैं उस वनमें नहीं रहता । वह वन तो इस समय व्याघ्र और रीछोंसे भरा हुआ है।, मैं एक बौद्ध भिक्षु हूं । देश देशमें 'धर्मप्रचार करता हुआ घूमा करता हूं। ___ सत्यवती–पर यह बड़ा आश्चर्य है कि तुम्हारा और उनका नाम एकसा मिल गया। मेरे शरण भैया, भिक्षु नहीं-राजपुत्र हैं । भिक्षु-स्वप्नके राजपुत्रकी अपेक्षा जाग्रदवस्थाका भिक्षु अच्छा । क्योंकि तुम्हारा यह भाई सत्य है और वह स्वप्नका भाई मिथ्या है। सती बहिन, तुम स्वप्नको छोड़कर सत्यका अवलम्बन करो। __ सत्यवती मन्त्रमुग्ध सरीखी हो रही । उसने स्नेहपूर्ण स्वरसे कहा, "अच्छा ।" (४) राज्यके खजांची लाला किशनप्रसादने मन-ही-मन सोचा कि राजकुमारी मन्द्राकी इस अद्भुत आज्ञाका कोई न कोई गूढ आशय अवश्य है। एक सुपुरुष युवाको सत्यवतीके समान सुन्दरी युवतीके घर कैद करनेकी कूटनीतिको लालासाहब तत्काल ही समझ गये । लालासाहब जातिके क्षत्रिय हैं । पुराने समयमें कुछ क्षत्रिय युद्धव्यवसाय छोड़कर लिखनेका काम करने लगे थे। कहते हैं कि पीछे उन्हींके वंशका नाम कायस्थ पड़ गया। गरज यह कि लाला साहब कायस्थ हैं। आपकी उमर इस समय ३० वर्षके लगभग है;
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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