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________________ कञ्छुका। हृदयका प्रेमी है, राज्यका नहीं। और इस तरह जीतनेके लिए आकर मैं बड़े आनन्दसे हार गया । मेरी यह काली वधू ही मेरे राज्यको उज्ज्वल करेगी। यह कौन नहीं जानता कि यमुना ( नदी ) काली है ! इसीलिये उसका हृदय गंभीर और शीतल है। यामिनी काली है, इसीलिए उसके शरीरमें अगणित तारागणोंकी मालायें चमकती हैं और इसी तरह काले कोयलेके भीतर प्रकाशमान हीरा छुपा रहता है। यमुना, मैं अनादर करके तुम्हें अपराजिताके फूलोंकी माला दिया करता था । किन्तु अब दुःखसे फिर सुखमें आकर मैंने समझा है कि तुम वास्तवमें अपराजिता हो, तुम्हारी तुलना किसीसे नहीं हो सकती। कञ्छुका। १ राजनीति। भारतवर्षमें दशमी शताब्दीके प्रारंभमें इतने छोटे छोटे स्वाधीन राज्य स्थापित हुए थे कि उनकी गिनती करना कठिन था। स्वार्थी, बलहीन और विलासप्रिय राजालोग अपने अपने राज्यमें सब चिन्ताओंसे मुक्त होकर समय बिताया करते थे और मुसलमान लोग मौका पाकर धीरेधीरे पंजाबकी सीमामें प्रबल होते जाते थे । हम जिस समयका उल्लेख करते हैं, उस समय चंदेलवंशीय राहल राजाका पुत्र हर्षदेव बुन्देलखण्डका राजा था । वह बड़ा स्वदेशानुरागी था और सदैव इसी चिन्तामें मग्न रहता था कि भारतवर्ष विदेशी आक्रमणोंसे किस तरह बच सकता है। सीमान्तप्रदेशोंको सुरक्षित रखनेके लिए समस्त देशके राज्यबलको एकत्र करना आवश्यक और उचित समझकर उसने एक बार भिन्न भिन्न प्रदेशोंकी राजसभाओंमें दूत भेजे; परन्तु किसीने भी उसकी बातपर ध्यान न दिया । उस समय भारतवर्ष पुण्यहीन था; मनुष्यकी चेष्टासे उसका उद्धार होना असंभवसा हो गया था । एक दिवस संध्यासमय हर्षदेव योद्धाओं और पंडितोंके साथ राजसभामें बैठे थे; इतनेमें भाटोंने आकर उनका यशोगान करना प्रारंभ किया। राजाने उन्हें रोककर कहा कि-" मैं सिर्फ इस छोटेसे
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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