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________________ रवीन्द्र-कथाकुञ्ज भी फटकार खानी पड़ी कि हजारों अच्छीसे अच्छी लड़कियोंके होते हुए भी उसने इस जी जलानेवाली चुडै जको पसन्द करके अपनी खराबी की। ५. उस दिन प्रायः दिन-भर घरके बाहर और अन्दर दोनों ही जगह घोर जल-वर्षा और अश्रु-वर्षा होती रही। दूसरे दिन जब कोई एक पहर रात बीत गई, तब अपूर्वने मृण्मयीको जगाकर कहा-तुम अपने बाबूजीके पास जाओगी? मृण्मयीने जल्दीसे अपूर्वका हाथ पकड़ लिया और चौंककर कहा -हाँ, जाऊँगी। अपूर्वने कहा-तो चलो, हम दोनों चुपचाप भाग चलें । मैं एक नाव ठीक कर पाया हूँ। मृण्मयीने पहले बहुत ही कृतज्ञताके साथ पतिके मुँहकी ओर देखा और फिर जल्दीसे उठकर कहा-चलो। अपूर्वने एक पत्र लिखकर रख दिया, जिससे माँको विशेष चिन्ता न हो और तब दोनों घरसे बाहर हो गये। मृण्मयीके लिए पहला ही अवसर था कि जब उसने उस अंधेरी रातमें एक निस्तब्ध निर्जन मार्गपर स्वेच्छापूर्वक अान्तरिक विश्वासके साथ अपने पतिका हाथ पकड़ा । उसके हृदयके आनन्दकी लहरें उस सुकोमल स्पर्शके योगसे अपूर्वकृष्ण की रग-रगमें तेजीके साथ पहुंचने लगीं। नाव उसी रातको चल दी । हर्षकी अतिशय प्रबलता होनेपर भी मृण्मयीको बहुत जल्दी नींद आ गई । दूसरे दिन उसे जिस स्वाधीनता और सुखका अनुभव हुआ उसका वर्णन नहीं हो सकता । नदीके दोनों
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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