SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजतिलक केवल एक बात में उन्होंने पूरा पूरा सुधार कर लिया। इस समय वे यह बात प्रायः भूल ही गये कि साहब लोगोंका कृपा प्रसाद ही जीवनका परम लक्ष्य है और अपने संबंधी जनोंकी श्रद्धा और प्रीति कितने सुख और गौरवकी चीज है, इसका वे सारे अन्तःकरण से अनुभव करने लगे । ३१ इसके सिवा, वे मानो एक नई परिस्थितिमें जा पड़े। लावण्यके पति नीलरतनबाबू अदालत के सबसे बड़े वकील होनेपर भी कभी साहब atrina मुलाकात के लिए नहीं जाते थे । जब कभी इस बातकी चर्चा उठती, तब वे कहते – इसकी जरूरत ही क्या है ? यदि बदले में उचित शिष्टाचार न मिला, तो हम जो कुछ देते हैं, वह तो किसी तरह वापस मिल ही नहीं सकता । मरुभूमिकी रेत स्वच्छ और सफेद होती है; पर क्या केवल इसी कारण उसमें बीज बोने से कोई लाभ हो सकता है ? यदि फसल वापस मिले तो काली जमीनमें भी बीज बोना अच्छा है । नवेन्दुबाबू भी खिंचाव में पड़कर इसी दलमें या मिले। इसका परिणाम क्या होगा, इसकी चिन्ता उन्होंने छोड़ दी । उनके स्वर्गवासी पिताने और स्वयं उन्होंने जो जमीन तैयार पहले से कर रक्खी थी, केवल उसीमें 'रायबहादुरी' की उपजकी संभावना बढ़ने लगी; उसमें नई सिंचाई की जरूरत नहीं समझी गई । नवेन्दुबाबूने साहब लोगों के एक अतिशय प्यारे स्थान में उनके लिए घुड़दौड़का एक मैदान तैयार करा दिया था । इसी समय कांग्रेसका समय समीप आ गया । नीलरतन बाबूसे अनुरोध किया गया कि श्राप चन्दा इकट्ठा करनेका प्रयत्न करने की कृपा करें | नवेन्दुबाबू लावण्यके साथ प्रसन्नतापूर्वक ताश खेल रहे थे । इतनेमें नीलरतन चन्द्रेकी फेहरिस्त लिये हुए आ पहुँचे और बोले कि इसपर सही करनी होगी । पूर्व संस्कार के कारण नवेन्दुका मुख सूख गया । लावण्यने ताना
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy