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________________ राजतिलक जिस समय नवेन्दुशेखरके साथ अरुणलेखाका विवाह हुआ, उस समय होम-धूमके बीचमेंसे भगवान प्रजापति जरा-सा मुसकरा दिये । परन्तु प्रजापतिके लिए जो एक मामूली खिलवाड़ है, वह हमारे लिए सदा कौतुककी ही बात नहीं हो सकती। ___नवेन्दुशेखरके पिता पूर्णेन्दुशेखर अँगरेज़ी अमलदारीके बहुत ही विख्यात पुरुष थे। वे इस भव-समुद्र में केवल फर्शी सलामका डाँड़ चलाकर 'राय बहादुर' उपाधिके उत्तुङ्ग मरुतट तक पहुँच गये थे । यद्यपि उनके पास और भी दुर्गमतर सम्मान-पथका पाथेय था ; किन्तु पचपन वर्षकी उमरमें बिलकुल समीपवर्ती उपाधिके कुहरेसे ढके हुए गिरिशिखरकी अोर करुण-लोलुप दृष्टि लगाये हुए यह राजकृपापात्र व्यक्ति एकाएक खिताब-वर्जित लोकको चल दिया और उसकी बहु-सलामशिथिल ग्रीवा श्मशान-शय्यापर विश्राम करने लगी।
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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