SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पड़ोसिन २१ कर ली, उसमें भी वह कहता है कि मेरा कोई उद्देश्य न था। यह कौन नहीं जानता कि जिसको प्यार किया जाता है उसके निकटवर्तीका संग-साथ भी अच्छा ही मालूम होता है ? ___अाखिर भाईकी कठिन बीमारीके उपलक्षसे उसकी बहन के साथ नवीनकी किस प्रकार मुलाकात हुई, यह कहने की आवश्यकता नहीं । कविके साथ कविताके अवलम्बित विषयका प्रत्यक्ष परिचय हो गया और तब कविताके संबंधमें बहुत कुछ आलोचना भी हो गई ; परन्तु वह पालोचना केवल छपी हुई कविताओं में ही आबद्ध न रही। ___ सम्प्रति मेरे साथ तर्कमें परास्त होकर नवीन उस विधवाके समक्ष विवाहका प्रस्ताव कर बैठा है। पहले तो वह किसी तरह राजी नहीं हुई ; परन्तु जब नवीनने मुझसे सुनी हुई सारी युक्तियों का प्रयोग किया और उनके साथ अपनी आँखोंकी दो चार बूंदें भी मिला दी, तब उसे हार माननी पड़ी। अब विधवाके अभिभावक खर्चके लिए कुछ रुपये चाहते हैं। मैंने कहा-रुपयोंकी क्या चिन्ता है ! अभी ले जाओ। 'नवीनने कहा-इसके सिवाय पिताजी मुझे जो मासिक खर्च दिया करते हैं विवाह के बाद चार छः महीने तक उसे भी वे बन्द कर देंगे। सो उतने समय तक हम दोनोंके खर्चका भी प्रबन्ध तुम्हें कर देना होगा। मैंने बिना कुछ कहे सुने एक चेक काट दिया। फिर कहाअब उसका नाम बतला दो। जब मेरे साथ कोई प्रतियोगिता नहीं है, तब तुम्हें उसका परिचय देनेमें डर ही क्या है ! मैं तुम्हारी सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि मैं उसके नाम कविता भी नहीं लिखूगा और यदि कभी लिखूगा भी, तो उसके भाई के पास न भेजकर तुम्हारे पास भेज दूंगा! नवीनने कहा---अजी, मैं इससे नहीं डरता। विधवा विवाहकी
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy