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________________ पड़ोसिन मेरी पड़ोसिन बाल विधवा है। वह मानो शिशिरके श्राँसे भीगी हुई कुन्द कली के समान डंठल से अलग हो गई है और किसीकी सुहाग-रात के लिए नहीं, बल्कि केवल देव पूजा के लिए ही उत्सर्ग की गई है। मैं मन ही मन उसकी पूजा करता हूँ। उसके प्रति मेरे हृदयका जो भाव हैं, उसे 'पूजा' को छोड़कर मैं और किसी सहज शब्द के द्वारा प्रकाशित नहीं करना चाहता । इस विषय में मेरे अन्तरङ्ग मित्र नवीन भी कुछ नहीं जानते और इस तरह मैंने जो अपने गहरे थावेगको छिपा कर निर्मल रख छोड़ा था, इसका मुझे गर्व था । किन्तु हृदयका आवेग पहाड़ी नदीके समान, अपने जन्म- शिखर में
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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