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________________ अतिथि १२३. काँठाल गाँव अपनी कुटीका द्वार बन्द करके और दीपक बुझाकर चुपचाप सोने लगा। ___ दूसरे दिन तारापदकी माता और सब भाई आकर काँठालमें नाव परसे उतरे । उसके दूसरे दिन अनेक प्रकारकी सामग्रीसे लदी हुई तीन ना भी कलकत्तेसे पाकर काँठालके जमींदारकी छावनीके सामने घाट पर श्रा लगीं । इसके तीसरे दिन बहुत सबेरे सोनामणि एक कागजपर कुछ अाम्रसत्व (सुखाया हुअा अामका रस) और दोने में थोड़ा-सा अचार लिये हुए डरती डरती तारापदके पढ़नेके कमरेके दरवाजेपर चुपचाप आकर खड़ी हो गई । पर उस दिन तारापद कहीं किसीको दिखलाई नहीं दिया। इससे पहले ही कि स्नेह, प्रेम और बन्धुत्वके षड्यन्त्रका बन्धन उसे चारों ओरसे पूरी तरहसे घेर लेता, समस्त गाँवका हृदय चुराकर वर्षाऋतुकी अंधेरी रातमें वह ब्राह्मण बालक. श्रासक्ति-विहीन और उदासीन जननी विश्वपृथ्वीके पास चला गया।
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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