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________________ रवीन्द्र-कथाकुञ्ज अन्नपूर्णाने फिर पूछा- तो फिर तुम उसे छोड़कर चले कैसे आये ? तारापद ने कहा- उसके और भी चार लड़के और तीन लड़कियाँ हैं । ६८ बालकका यह अद्भुत उत्तर सुनकर अन्नपूर्णा बहुत ही दुःखी हुई || उसने कहा- वाह, भला यह भी कोई बात है ! हाथमें पाँच उँगलियाँ हैं, तो क्या इसलिए एक उँगली काट डाली जाय ? तारापदकी अवस्था कम थी और इसी लिए उसका इतिहास भी बहुत ही संक्षिप्त था । पर फिर भी उसमें बहुत ही विलक्षणता और नवीनता थी । वह अपने पिता-माताका चौथा पुत्र था और छोटी अवस्था में ही पितृहीन हो गया था । यद्यपि उसकी माताकी कई सन्तानें थीं, तथापि घरमें उसका बहुत श्रादर था । माँ, भाई, बहनें और पास पड़ोस के लोग सभी उसके साथ बहुत अधिक प्रेम करते थे । यहाँ तक कि गुरुजी भी कभी उसे मारते पीटते नहीं थे । यदि कभी वे उसे कुछ मार भी बैठते तो उसके अपने पराए सभी लोगोंको बहुत अधिक दुःख होता । ऐसी दशामें उसके लिए घर छोड़कर भागनेका कोई कारण नहीं था । जो लड़का उपेक्षित और रोगी - सा था, सदा ही चुरा चुराकर पेड़ों के फल और उन पेड़ोंके मालिकोंसे प्रतिफलस्वरूप चौगुनी मार खाकर इधर उधर घूमा करता था, वह तो अपनी परिचित ग्रामसीमा में मारपीट करनेवाली माँके पास पड़ा रह गया; और सारे गाँवका प्यारा यह बालक विदेशी रासधारियोंके दलके साथ प्रसन्नतापूर्वक गाँव छोड़कर भाग आया । I सब लोग उसे ढूँढ़कर फिर गाँव में ले आये । माताने उसे कलेजेसे लगाकर लगातार रोते रोते उसका सारा शरीर आँसुओं से भिगो दिया । उसकी बहनें भी रोने लगीं। उसके बड़े भाईने पुरुष अभिभावकका कठिन
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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