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________________ प्रमेयकमलमार्तण्ड होगा; क्योंकि न्यायसूत्रोंका निर्णय तात्पर्य-टीकामें अत्यन्त अपेक्षित है । 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' में तात्पर्य-टीका उद्धृत है, अतः तात्पर्यटीकाके वाद 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' की रचना हुई। योगभाष्यकी तत्त्ववैशारदी टीकामें 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' का निर्देश है, अतः निर्दिष्ट कौमुदीके बाद 'तत्त्ववैशारदी' रची गई। और इन सभी ग्रन्थोंका 'भामती' टीकामें निर्देश होनेसे 'भामती' टीका सबके अन्तमें लिखी गई है। जयन्त वाचस्पति मिश्रके समकालीन वृद्ध हैं-वाचस्पतिमिश्र अपनी आद्यकृति 'न्यायकणिका' के मङ्गलाचरणमें न्यायमञ्जरीकारको बड़े महत्त्वपूर्ण शब्दोंमें गुरुरूपसे स्मरण करते हैं । यथाः "अज्ञानतिमिरशमनी परद्मनी न्यायमञ्जरी रुचिराम् । प्रसवित्रे प्रभवित्रे विद्यातरवे नमो गुरवे ॥" अर्थात्-जिनने अज्ञानतिमिरका नाश करनेवाली, प्रतिवादियोंका दमन करने वाली, रुचिर न्यायमंजरीको जन्म दिया उन समर्थ विद्यातरु गुरुको नमस्कार हो। इस श्लोकमें स्मृत 'न्यायमञ्जरी' भट्ट जयन्तकृत न्यायमञ्जरी जैसी प्रसिद्ध 'न्यायमञ्जरी' ही होनी चाहिये । अभी तक कोई दूसरी न्यायमञ्जरी तो सुनने में भी नहीं आई। जब वाचस्पति जयन्तको गुरुरूपसे स्मरण करते हैं तब जयन्त वाचस्पति के उत्तरकालीन कैसे हो सकते हैं । यद्यपि वाचस्पतिने तात्पर्यटीकामें 'त्रिलोचनगुरून्नीत' इत्यादि पद देकर अपने गुरुरूपसे 'त्रिलोचन' का उल्लेख किया है, फिर भी जयन्तको उनके गुरु अथवा गुरुसम होने में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि एक व्यक्तिके अनेक गुरु भी हो सकते हैं। ___ अभी तक 'जातञ्च सम्वद्धं चेत्येकः कालः' इस वचनके आधार पर ही जयन्तको वाचस्पतिका उत्तरकालीन माना जाता है । पर, यह वचन वाचस्पतिकी तात्पर्य टीकाका नहीं है, किन्तु न्यायवार्तिककार श्री उद्योतकरका है ( न्यायवार्तिक पृ. २३६), जिस न्यायवार्तिक पर वाचस्पतिकी तात्पर्यटीका है। इनका समय धर्मकीर्तिसे पूर्व होना निर्विवाद है। म०म० गोपीनाथ कविराज अपनी 'हिस्ट्री एण्ड बिब्लोग्राफ़ी आफ़ न्याय वैशेषिक लिटरेचर' में लिखते हैं* कि-"वाचस्पति और जयन्त समकालीन होने चाहिए, क्योंकि जयन्तके ग्रन्थों पर वाचस्पतिका कोई असर देखने में नहीं आता।" 'जातञ्च' इत्यादि चाक्यके विषय में भी उन्होंने सन्देह प्रकट करते हए लिखा है कि-"यह वाक्य किसी पूर्वाचार्य का होना चाहिये।" वाचस्पतिके पहले भी शंकरस्वामी आदि नैयायिक हुए हैं, जिनका उल्लेख तत्त्वसंग्रह आदि ग्रन्थों में पाया जाता है। ___ म०म० गङ्गाधर शास्त्रीने जयन्तको वाचस्पतिका उत्तरकालीन मानकर * सरस्वती भवन सीरीज़ III पार्ट ।
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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