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________________ प्रस्तावना उन्होंने भूमिकामें लिखा है की-"जयन्तभट्टका गंगेशोपाध्यायने उपमान चिन्तामणि (पृ. ६१) में जरन्नैयायिक शब्दसे उल्लेख किया है, तथा जयन्तभट्टने न्यायमंजरी (पृ० ३१२) में वाचस्पति मिश्रकी तात्पर्य-टीकासे "जातं च सम्बद्धं चेत्येकः कालः” यह वाक्य 'आचार्यैः' करके उद्धृत किया है। अतः जयन्तका समय वाचस्पति (841 A. D.) से उत्तर तथा गंगेश (1175 A. D.) से पूर्व होना चाहिये ।" इन्हींका अनुसरण करके न्यायमञ्जरीके द्वितीय संस्करणके सम्पादक पं० सूर्यनारायणजी शुक्लने, तथा 'संस्कृतसाहित्यका संक्षिप्त इतिहास' के लेखकोंने भी जयन्तको वाचस्पतिका परवर्ती लिखा है। ख० डॉ० शतीशचन्द्र विद्याभूषण भी उक्त वाक्यके आधार पर इनका समय ९ वीं से ११ वीं शताब्दी तक मानते थे* । अतः जयन्तको वाचस्पतिका उत्तरकालीन माननेकी परम्पराका आधार म. म. गंगाधर शास्त्री-द्वारा "जातं च सम्बद्धं चेत्येकः कालः" इस वाक्यको वाचस्पति मिश्रका लिख देना ही मालूम होता है । वाचस्पति मिश्रने अपना समय 'न्यायसूची निबन्ध' के अन्तमें स्वयं दिया है। यथा "न्यायसूची निबन्धोऽयमकारि सुधियां मुदे। . श्रीवाचस्पति मिश्रेण वखंकवसुवत्सरे ॥" इस श्लोकमें ८९८ वत्सर लिखा है। म० म० विन्ध्येश्वरीप्रसादजीने 'वत्सर' शब्दसे शकसंवत् लिया है।। डॉ० शतीशचन्द्र विद्याभूषण विक्रम संवत् लेते हैं।। म. म. गोपीनाथ कविराज लिखते हैं कि 'तात्पर्यटीकाकी परिशुद्धिटीका बनानेवाले आचार्य उदयनने अपनी 'लक्षणावली' शक सं० ९०६ (984 A.D.) में समाप्त की है। यदि वाचस्पतिका समय शक सं० ८९८ माना जाता है तो इतनी जल्दी उस पर परिशुद्धि जैसी टीकाका बन जाना संभव मालूम नहीं होता। अतः वाचस्पतिमिश्रका समय विक्रम संवत् ८९८ (841 A. D.) प्रायः सर्वसम्मत है। वाचस्पतिमिश्रने वैशेषिकदर्शनको छोड़कर प्रायः सभी दर्शनों पर टीकाएँ लिखीं हैं । सर्वप्रथम इन्होंने मंडनमिश्रके विधिविवेक पर 'न्यायकणिका' नामकी टीका लिखी है, क्योंकि इनके दूसरे ग्रन्थोंमें प्रायः इसका निर्देश हैं। उसके बाद मंडनमिश्रकी ब्रह्मसिद्धिकी व्याख्या 'ब्रह्मतत्त्वसमीक्षा' तथा 'तत्त्वबिन्दु'; इन दोनों ग्रन्थोंका निर्देश तात्पर्य-टीकामें मिलता है, अतः उनके बाद 'तात्पर्य-टीका' लिखी गई । तात्पर्य टीकाके साथही 'न्यायसूची-निबन्ध' लिखा * हिस्ट्री ऑफ दि इण्डियन लॉजिक, पृ० १४६ । | न्यायवार्तिक-भूमिका, पृ० १४५। + हिस्ट्री ऑफ दि इण्डियन लाजिक, पृ० १३३ । % हिस्ट्री एंड बिब्लोग्राफी ऑफ न्यायवैशेषिक लिटरेचर Vol. III, पृ० १०१॥
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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