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________________ रहस्यवाद : एक परिचय ४३ और समरस हो जाता है।' इसका सुन्दर विवेचन उनकी रचनाओं में हुआ है। मुनि रामसिंह की 'पाहुड़ दोहा' रहस्यवाद की दृष्टि से सुन्दर कृति है। योगीन्दु मुनि के समान ही वे भी कहते हैं कि जब विकल्प रूप मन भगवान्, आत्माराम से मिल गया और ईश्वर भी मन से मिल गया, दोनों समरसता की स्थिति में पहुंच गए, तब पूजा किसे चढ़ाऊं ?२ अपभ्रंश साहित्य के रहस्यवादी कवियों के अनन्तर मध्ययुग के जैन हिन्दी रहस्यवादी कवियों में बनारसीदास का नाम सबसे पहले आता है। नाटक समयसार, अध्यात्म गीत, बनारसी विलास आदि इनकी रहस्यवादी रचनाएं अध्यात्म-प्रधान हैं। बनारसीदास की आत्मा अपने प्रियतम परमात्मा से मिलने के लिए उत्सुक है। वह अपने प्रिय के वियोग से ऐसी तड़प रही है, जैसे, 'जल बिनु मीन'। अन्त में, प्रियतम से मिलने पर मन की दुविधा समाप्त हो जाती है। उसे अपना पति (परमात्मा) घट में ही मिल जाता है । मिलने पर आत्मा और परमात्मा किस प्रकार एकाकार और एकरस हो जाते हैं, इसका सुन्दर चित्रण निम्नलिखित पद में अभिव्यक्त हुआ है : "पिय मोरे घट मैं पिय माहि, जलतरंग ज्यों दुविधा नाहिं।"३ वास्तव में, बनारसीदास ने सुमति और चेतन के बीच अद्वैतभाव की स्थापना करते हुए रहस्यवाद की साधना की है। ___ बनारसीदास के बाद हिन्दी जैन रहस्यवादी सन्त कवियों में सन्त आनन्दघन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बनारसीदास की भांति ही इन्होंने भी आत्मा-गर.:: - का प्रिय-प्रेमी के रूप में चित्रण किया है। इन्होंने १. मणि मिलियउ परमेसरहं परमेसरू वि मणस्स । बीहि वि समरसी हूवाहं पुज्ज चडावउं कस्स ॥ -परमात्म प्रकाश, १२ । २. मणु मिलियउ परमेसर, पर मेसरू जि मणस्स । विण्णि वि समरसि हुइ रहिय पुज्जु चडावउ कस्स ॥ -पाहुड़ दोहा, पृ० १६ । ३. बनारसी विलास, पृ० १६१ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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