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________________ ४२ आनन्दघन का रहस्यवाद करो ।' इन्होंने यह भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि आत्मा और परमात्मा में तत्त्वतः कोई अन्तर नहीं है । आत्मा ही परमात्मा है । कर्मावरण के कारण ही आत्मा निज स्वरूप से वंचित है । प्रत्येक आत्मा कर्मादि से रहित होकर उसी प्रकार परमात्मा बन सकता है जिस प्रकार स्वर्ण-पाण शोधन सामग्री द्वारा शुद्ध स्वर्ण बन जाता है । इस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में भावात्मक रहस्यवाद की विवेचना हुई है । कुन्दकुन्द के रहस्यवादी साहित्य का प्रभाव कार्तिकेय, पूज्यपाद, योगीन्दु मुनि मुनि रामसिंह और वनारसीदास की रचनाओं में स्पष्टतः देखा जा सकता है । इन सभी रहस्यवादी कवियों में कुन्दकुन्द के समान हो आत्मा के त्रिविध भेदों की विचारणा पाई जाती है । पूज्यपाद की समाधितक एवं अध्यात्म रहन्य रचनाएँ आध्यात्मिक रहस्य - प्रधान हैं । योगीन्दु मुनि के परमात्म-प्रकाश एवं योगसार में रहस्यवादी प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं । रहस्यवादी कवियों की भांति उनका भी यह विश्वास है कि परमात्मा का निवास शरीर में ही है। उन्होंने कहा है कि जो शुद्ध, निर्विकार आत्मा लोकाकाश के अग्रभाग में स्थित है, वही इस देह में भी विद्यमान है | साथ ही इसी शरीर में उसके दर्शन करने का निर्देश भी किया है । र उनका यह भी कथन है कि शरीर स्थित जो यह आत्मा है वही परमात्मा है । निरंजन पद प्राप्त करने पर मन परमेश्वर में एकाकार १. तिपयारो सो अप्पा पर मंतर बाहिरो हु देहीणं । तत्य परो झाइज्जइ अन्तो वाएण चयहि बहिरप्पा | - मोक्ष प्राभृत-४ | २. अइसोहण जोएणं सुद्धं हेमं कालाई लद्धीये अप्पा ३. जेहउ णिम्मलु णाण तेहउ णिवसइ बंभु ४. हवइ जह तहय । परमप्पो हवदि ॥ - मोक्षपाहुड - २४ । मउ सिद्धि हि णिव सइ देउ । परू देह हंम करि भेउ | - परमात्मप्रकाश, पृ० २३. | एहु जु अप्पा सो परमप्पा कम्म - विसेसे जायउ जप्पा । जाई जाइ अप्पे अप्पा तामई सो जि देउ परमप्पा | जो परमप्पा णाणमउ सो हउ देउ अणंतु । जो सो परमप्पु प एहउ भावि भिंतु ॥ वही, १७४- १७५, पृ० २८४ - २८५ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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