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________________ आनन्दघन का भावात्मक रहस्यवाद सन्त आनन्दघन ने भी इस मोहिनी माया का चित्रण बड़े ही प्रभावोत्पादक ढंग से अनेक पदों में किया है । एक पद में उन्होंने स्पष्टरूप से कहा है कि 'जगत् को ठगनेवाली ऐसी मोहिनी माया ने चेतनराज को भी ठग लिया है ।'' अन्यत्र भी उन्होंने कबीर की भांति ममता माया को ठगिनी, धोखेबाज आदि कहा है । न केवल आनन्दघन ने अपितु कवि भूधरदास ने भी माया को 'ठगनी' कहा है, क्योंकि वह समूचे संसार को ठगकर खा जाती है । जो इस पर तनिक भी विश्वास करता है, वह मूर्ख पीछे से पछताता है । 3 और कबीर ने तो इसे 'महाठगिनी' बताया है, चूंकि इसके जाल से ब्रह्मा, विष्णु और महेश बच नहीं सके । सन्त पलटू के अनुसार माया ने किसी को ठगने से नहीं छोड़ा, किन्तु इसको किसी ने नहीं ठगा । जो इसको ठग सके उसे ही सच्चा भक्त समझना चाहिए । इसी तरह, अनेक सन्तों, कवियों एवं साधकों ने माया को ठगिनी के रूप में अंकित किया है । माया का यह महामोहिनी रूप इतना प्रबलतम है कि वह जीव को किसी प्रकार नहीं छोड़ती है । भ्रम, मोह आदि विकारों से रहित प्राणी को भी अपने आकर्षक एवं मोहक रूप से छलपूर्वक लुभा १. मोहनी मोहन ठग्यो, जगत ठगारी री । दीजिए आनन्दघन दाद हमारी री । — आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ७६ । २. ठगोरी, भगोरी, लगोरी, जगोरी । ममता, माया आम लै मति, अनुभव मेरी और दगोरी । वही, पद १७ । ३. सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया । -टुक विश्वास किया जिन तेरा सो मूरख पछताया || भूधरदास, भूवर विलास, ८ वां पद, पृ० ५ । माया महाठगिनी हम जानी तिरगुन फांसि लिये कर डोलै, बोलै मधुरी बानी ॥ ४. ५. — कबीर, सबद, सन्त सुधारस । माया ठगिनी जग ठगा इहकै ठगा न कोय । पलटू यहिकै सो ठगै (जो ) सांचा भक्ता होय || -पलटू, संतवाणी संग्रह, भाग १, पृ० २२३ | ३१५
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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