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________________ आनन्दघन का रहस्यवाद नहीं होती क्योंकि उनका अनुभव इन्द्रिय ग्राह्य होता है । जब दृश्य से अदृश्य तत्त्व की अनुभूति होती है तब रहस्य का जन्म होता है । इस प्रकार, जो तत्त्व अदृश्य होकर भी अस्तित्व बनाये रखता है, उसके प्रति जिज्ञासा स्वाभाविक है । इस दृश्य - जगत् के अतिरिक्त भी और कोई परम सत्ता, परम तत्त्व या परम सत्य है जो अतीन्द्रिय, अदृश्य एवं अरूपी है । उसके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। ऐसी भावना जब मानवमन में उद्भूत होती है तब उसका साक्षात्कार करने के लिए साधक व्यावहारिक भूमिका से ऊपर उठकर यथार्थ की खोज में विविध आध्यात्मिक साधना में संलग्न होता है । साधना और भावना के द्वारा वह उस रहस्यमय परमतत्त्व से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास करता है । २० वेदों में रहस्यवाद सर्वप्रथम रहस्य-भावना के बीज हमें वेदों में मिलते हैं । उनमें पूर्णता की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए रहस्य-द्रष्टाओं की रहस्यानुभूति अभिव्यक्त हुई है। वैदिक मान्यतानुसार वेद वाणी रहस्यमय कही जाती है । वेदों को अपौरुषेय कहा गया है । यही कारण है कि वेद-मन्त्रों के रचयिता ऋषियों को मंत्रों का द्रष्टा कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि उन वेद मन्त्रों का ज्ञान उन्हें प्रातिभ अनुभूति से हुआ । वेदों में निहित ज्ञान प्रतीकों द्वारा स्पष्ट किया गया है। ऋग्वेद ( मण्डल ९ सूक्त ८३ ) में अंगिरस ऋषि अग्नि का ही स्वरूप है, जो दिव्य संकल्प शक्ति का प्रतीक है । इसी तरह 'गो' शब्द ज्योति, ज्ञान की रश्मियों का वाचक है । ऊषा को 'गवांनेत्री' – गौओं को प्रेरित करनेवाली कहा गया है (ऋग्वेद ७/७६।६ ) । इसके अतिरिक्त देवों की प्रार्थना तथा अनेकविध यज्ञों का विधान भी वेदों में है । इसीलिए सम्भवतः डा० दासगुप्ता ने उसे 'याज्ञिक रहस्यवाद' जैसा नाम दिया है । चार वेदों में से ऋग्वेद में रहस्यवाद की सर्वाधिक अभिव्यंजना हुई है । रहस्यात्मक प्रत्यक्ष का वर्णन ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में है । इसमें इन्द्रिय गोचर सम्पूर्ण सृष्टि के अस्तित्व एवं सृजन के सम्बन्ध में रहस्यात्मक अनुभूति से युक्त एक ऋषि के अनुभव का वर्णन किया गया है । वह इस प्रकार है- 'आदि में न सत् था और न असत्, न स्वर्ग था, न आकाश । किसने आवरण डाला, किसके सुख के लिए ? तब अगाध और गहन जल
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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