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________________ आनन्दघन के रहस्यवाद के दार्शनिक आधार १८९ क्षण बदलता रहता है तो फिर बन्धन और मोक्ष किसका होगा ? बन्धन और मोक्ष के बीच तो किसी स्थायी सत्ता का होना अनिवार्य है । अन्यथा स्थायी सत्ता के अभाव में बन्ध-मोक्ष की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जहां एक ओर बौद्ध-दर्शन आत्मा की स्थायी सत्ता को अस्वीकार करता है वहीं दूसरी ओर वह बन्ध-मोक्ष, पुनर्जन्म आदि की अवधारणा को स्वीकार करता है। किन्तु यह तो वदतोव्याघात जैसी परस्पर विरुद्ध बात है। प्रश्न यह है कि यदि आत्मा क्षण-क्षण में बदलता है तो उसे बन्धन कैसे होगा? और जब बन्धन नहीं होगा तो मोक्ष किसका होगा? यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि जो बन्धन में होता है वही मुक्त होता है। लेकिन अनित्य-आत्मवाद की दृष्टि से तो बन्धन में पड़नेवाला आत्मा अन्य होगा और मुक्त होने वाला आत्मा अन्य । यद्यपि बुद्ध ने बन्धन (दुःख) से मुक्त होने के लिए चार आर्य सत्य, अष्टांग मार्ग आदि का उपदेश दिया, किन्तु इस मान्यता के अनुसार जगत् के समस्त पदार्थ क्षणिक हैं, अनित्य है, अतः आत्मा भी क्षणिक है । जब आत्मा क्षणिक है तो चार आर्य सत्य तथा मोक्ष-मार्ग की साधना के रूप में प्रतिपादित अष्टांग मार्ग भी क्षणिक होंगे और जब मोक्ष के साधन और संसार के बन्धन क्षणिक होंगे तो मोक्ष की कल्पना भी स्वतः ही क्षणिक सिद्ध होगी। इस सिद्धान्त के अनुसार बन्धन से मुक्त होने के लिए अष्टांग मार्ग की साधना प्रथम क्षण में उत्पन्न होने वाला आत्मा करेगा और उसके प्रतिफल के रूप में मुक्ति या निर्वाण मिलेगा अगले क्षण में उत्पन्न होने वाले आत्मा को. क्योंकि प्रथम क्षण में साधना करनेवाला आत्मा तो विनष्ट हो चुका और उसके स्थान पर अन्य आत्मा का प्रादुर्भाव हो गया। कहने का तात्पर्य यह कि पहले क्षण में जो आत्मा था वह दसरे क्षण नहीं रहता। यदि प्रथम क्षण में उत्पन्न होनेवाला आत्मा ही बन्धन से मुक्त होता है ऐसा मान लें, तब तो आत्मा की अनित्यता का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। वस्तुतः एक ही क्षण में समस्त साधनाएँ करके पूर्णता को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक जन्म नहीं, अपितु अनेक जन्म पर्यन्त साधना करने के पश्चात् पूर्णता-मुक्ति प्राप्त होती है। किन्तु आत्मा के क्षणिक होने पर साधना और पूर्णता प्राप्त करने वाला आत्मा पृथक्-पृथक् होगा।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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